Laghu Katha Lekhanलघु कथा लेखन

Laghu Katha Lekhan in Hindi

आज के साहित्य में लघुकथा

लघुकथा अर्थात छोटी कहानी अर्थ कितना सरल है़। किन्तु क्या जितना सरल कह देना है़, क्या उतना लेखन मैं भी है़?
हिंदी साहित्य को विभिन्न विधाऐं पोषित करती आई हैं। जितना उसको पोषित करने में पद्य का हाथ है़ उससे कहीं ज़्यादा गद्य का हाथ है़। समय समय पर विधाओं की विकास शीलता में नये प्रयोग देखने को मिलते रहते हैं।

लघुकथा गद्य परिवार की सबसे छोटी विधा है़। छोटी विधा ज़रूर है़ मगर सबसे मारक क्षमता रखती है़। देखन में छोटे लागे पर घाव करे गंभीर – इस कहावत पर खरी उतरती है़ लघु कथा। लघु आकारीय कथाओं का चलन प्राचीन काल से ही रहा है़ चाहे वो विष्णु शर्मा जी का पंचतन्त्र हो, जैन कथाएँ या जातक कथाएँ हों।

आज के साहित्य में लघुकथा गतिशीलता का प्रखर प्रतिनिधित्व करने वाली विधा है़। गागर में सागर भरने वाली विधा है़।
विस्तृत आकाश को मुट्ठी के एक सूराख से जैसे देख पाते हैं हम एक कैमरे में पूरा पहाड़ समुद्र क़ैद कर लेते हैं हम।
सामाजिक विसंगतियां हों सांस्कृतिक उत्सव त्यौहार , हँसी ख़ुशी या ग़म का मंजर हो किसी विशेष बिंदु को देखते ही अचानक मन में कुछ भावनाओं के बादल जब मन मस्तिष्क पर दस्तक देते हैं तो एक लेखक क़लम के द्वारा उसी परिदृश्य को समाज के सामने रख देता है़।

मन में उमड़ते ये भाव अंदर से ही विधा का कलेवर चुन कर आते हैं  – कभी कविता कभी छंद कभी ग़ज़ल, कभी लघु कथा कभी लघुकथा। कभी पद्य तो कभी गद्य ।

लघुकथा विधान

लघुकथा में आकार के अतिरिक्त तीन चार मुख्य बातों का ध्यान रखा जाता है़ – कथानक, शैली, काल, पंच लाइन।
क्या कहना है़, कैसे कहना है़, क्यूँ कहना है़। अर्थात इस कहानी से समाज को क्या संदेश देना है़। यदि वो अपने उद्देश्य में सफल हो जाती है़ और उसकी पंच लाइन एक आघात का असर करती है़ तो वो एक सफल लघुकथा है़।

लघुकथा में लेखक को नाप तोलकर शब्द रखने पड़ते हैं, न अधिक न बहुत कम। एक ही काल के कथानक पर कथा कही जाती है़, नहीं तो काल खंड की दोषी हो जाती है़ लघुकथा।

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लघुकथा में किरदार के अनुसार शैली का चयन करना चाहिए। तथा सार्थक शीर्षक का चुनाव भी लघु कथा की ख़ूबसूरती बढाता है़।

पंक्चुएशन, विराम चिन्हों यति, प्रश्नचिन्ह,किसी के द्वारा वाक्य शुरू करने पर चिन्ह आदि का विशेष ध्यान रखना होता है।

आजकल लघुकथा भी दो भागों में बंटी हुई है लघुकथा और लघु-कथा। अक्सर नाम से लोगों को भरम हो जाता है कि ये लघुकथा है या लघु कथा।

लघुकथा व लघु कथा में अंतर

‘लघुकथा’ जो ऊपर लिखित विधान पर कसी हो वह विधान अनिवार्य है।

दूसरी ‘लघु कथा’ जो बहुत छोटे आकार की हो हो, मगर कालखंड आदि का कोई प्रतिबंध नहीं होता। कहावत मुहावरे कल्पनाएँ आदि का प्रयोग किया जा सकता है। जबकि लघुकथा में “उसने सोचा” या “सोच रहा होगा” आदि के लिए जगह नहीं होती, जो घटित होता है उसी पर लघुकथा कसी जाती है।

आज कल की भाग दौड़ की ज़िंदगी में गजेट्स के दौर में जहाँ पठन पाठन का क्रम धीमा हो गया है़, लोगों को बड़ी बड़ी कहानियों उपन्यासों को पढ़ने का वक़्त नहीं मिलता। वहाँ लघुकथाएँ पाठकों को अपनी तरफ़ आकर्षित करती प्रतीत हो रही हैं।ऐसे में कथाकारों का उत्तरदायित्व और बढ़ जाता है़ कि वो अपनी कहानियाँ नये मुद्दों पर समाज में घुसपैठ करती हुई बुरी आदतों पर, रीतियों पर, पूरे न्याय के साथ लिखें। यदि कुछ अच्छाइयां हैं तो उनपर भी खुल कर लिखें, ताकि आगे आने वाली पीढ़ी आइनो में हर पहलू को देखे।

By राजेश कुमारी 'राज'

साझा काव्य सँग्रह -50 के लगभग, विभिन्न पत्र पत्रिकाओँ में सतत लेखन, आकाशवाणी नजीबाबाद से काव्य पाठ, दूरदर्शन देहरादून से काव्य पाठ अंतर्राष्टीय ब्लॉगर सम्मेलन में प्रथम आने पर तस्लीम सम्मान लखनऊ, अंतराष्ट्रीय हिंदी उत्सव सम्मान पोर्ट लुई मॉरीशस में, इस्राइल की भारतीय एम्बेसी व भारतीय सँस्कृति कोष में इनकी तीन पुस्तकें शामिल

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