God is inside us

हमारे सुख में भी, हमारे दुःख में भी God is inside us

ढूंढते रहे जिन्हे हम ताउम्र अपने दिलों और दिमाग में बिठाकर, पर जब वो मिले तो ऐसा लगा कि वो मुझ से दूर कहाँ थे। हर वो जगह ढूंढ लिया था मैंने, जहाँ उनके होने की कहानियों को सुनकर मैं बड़ी हुई थी। बचपन से अब तक के सफर में वो थे, हमारे सुख में वो थे, हमारे दुःख में भी वो थे। हमारे रोज़ की जिंदगी में कोई सा भी ऐसा दिन नहीं होता, जहाँ वो न होते। हम उन्हें मंदिर में बिठाते, मस्जिद में बुलाते, दरगाह में इबादत करते, गुरुद्वारा में गुरुवाणी सुनाते, चर्च में मोमबत्ती जलाते। हर कुछ करते उनसे मिलने को, उनकी इक आहट पाने को। हर वक्त उनके इशारे का इंतज़ार करते, कुछ भी हो जाये हमारे साथ हम उसे उस ऊपर वाले की मर्जी बुलाते। उनसे मिलने की चाहत में हम हद से गुजर जाते।

उनकी साहसों, उनकी वीरता, उनके क्रोध, उनका प्यार सब तो हम अपनी कहानियों में सुनते और अपने आने वाली पीढ़ी को भी इस कदर उनके अंदर डाल देते कि वो भी हमारी ही तरह उसी नक़्शे कदम पर चलता हुआ फिर से  उसी कहानी को दुहराता हुआ ताउम्र जीके मर जाता है एक बार उनसे मिलने की कामना लिए।

पर क्या हम उन्हें एक बार अपने अंदर ढूंढ सकते हैं? क्या मजाक है ये …. ऐसा ही ख्याल आता हैं न, पर सच्चाई तो यही है। जिन्हे हम ताउम्र ढूंढ कर मर जाते हैं, वो हमारे इतने करीब होते हैं कि हम उन्हें देख  भी नहीं पाते हैं। दरअसल वो हमारे अंदर होते हैं। हमारे चलती सांसों में उनका साँस होता है, हमारे धड़कते दिल में उनका धड़कन होता है। हमारे कानों के अंदर उनकी आवाज़  होती है। वो कहीं और नहीं बस हमारे अंदर होते हैं।

जो हमारे इतने करीब हैं, उनसे इतनी दूरी कैसे

जाननी हो उनकी शक्ति तो अपनी शक्ति की परीक्षा लेके देख लो। जाननी हो उनकी सहनशीलता तो अपने अंदर की सहनशीलता को देख लो। जाननी हो उनकी ताकत तो अपनी ताकत को देख लो। जाननी हो उनकी खूबसूरती तो खुद को आईने में देख लो।  जिस दिन मिल लोगे अपने आप से, फिर न रहेगा उन्हें ढूंढने की ख्वाहिश। भूल जाओगे मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गुरुद्वारा और चर्च। सच तो यह है कि सच्चाई जानने के बाद पैरों तले जमीन खिसक जाती है। बचपन से पाले हुए सारे भ्रम टूट जाते हैं। ऐसा लगता है कि हमें बताया गया कुछ और, पर सच्चाई तो कुछ और ही है। सबों का कहना है कि इतना आसान नहीं उनसे मिलना। और फिर सुनी सुनाई बातों के अनुसार हम कभी कोशिश भी नहीं करते। पर क्या एकबार हम कोशिश करके देख सकते हैं?  क्या हम अपने अंदर उनसे मिल सकते हैं? जो हमारे इतने करीब हैं, उनसे इतनी दूरी कैसे। रहते तो वो हैं हमारे अंदर और हम ढूंढते हैं उन्हें बाहर। कैसी है ये विडंबना! दूर तो वो कभी हैं ही नहीं हमसे।

एक बार बैठकर शांति से आँखों को बंद करो। मन में चल रहे हर बातों को शांत होने की अनुमति दो। अपना ध्यान अपनी साँस पर ले जाओ। और कान के अंदर हो रही आवाज़ को सुनो।  क्या हुआ ) कुछ नहीं।  अब तुम फिर वही दुहराओगे।  इतना आसान नहीं है उनको पाना। आसान तो जिंदगी में कुछ भी नहीं पर ये भी सच है कि मुश्किल भी जिंदगी में कुछ भी नहीं। 

हाँ ये सच है …. “आसान तो जिंदगी में कुछ भी नहीं” … आसान तो जिंदगी में कुछ भी नहीं पर ये भी सच है कि मुश्किल भी जिंदगी में कुछ भी नहीं। 

वो हैं वो

क्या हमारी औकात है कि हम उन्हें कोई नाम दे सके।  क्या हमारी कोई हैसियत है कि हम उन्हें भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु और ईशु के नाम से बुला सकें। क्या हम उस लायक है कि हम उन्हें मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च में बिठा सकें। क्या वो हमारी इबादत, हमारी पूजा के मोहताज़ हैं। जब हम उन्हें इतना बड़ा मानते है तो उनकी पूजा या इबादत करके क्या सिद्ध करना चाहते हैं।

वो वो हैं जो हम सोच भी नहीं सकते हैं। उनकी शक्ति से ये ब्रह्मांड चलता है, और हम इस ब्रह्मांड में इक चींटी के बराबर भी नहीं हैं। पर ये सच है कि हमारे अंदर इस ब्रह्मांड को जीत लेने की ताकत है और वो इस लिए क्योंकि वो हमारे अंदर है। लिखने बैठूं उनके बारे में तो ये कागज कलम क्या ये जिंदगी कम पड़ जाये। वो हैं वो

By संयोगिता

पेशे से एक मेकअप आर्टिस्ट और मॉडल होने के साथ संयोगिता संजीदा लेखन भी करती है

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