प्राचीन भारत का आविष्कार संस्कृत भाषा  Sanskrit Language

हमारे भारतवर्ष का इतिहास शुरू से ही गौरवशाली रहा है, यहां की प्राचीन सभ्यता काफी विकसित और मजबूत थी। जब सारी दुनिया सुषुप्तावस्था में थी उस वक्त हमारा देश खोज और आविष्कार में जुटा हुआ था। धर्म, दर्शन, विज्ञान, वास्तु, ज्योतिष, खगोल, स्थापत्य कला, नृत्य कला, संगीत कला आदि सभी तरह के ज्ञान का जन्म भारत में हुआ है। इसके हजारों सबूत मौजूद हैं। मध्यकाल में इसके गौरव को नष्ट किया गया। कुछ तथाकथित लोग जो अपने इतिहास को अच्छी तरह से नहीं जानते, वे लोग पाश्चात्य सभ्यता को महान समझते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकता रखनी बड़ी अच्छी बात है, परंतु अपनी सभ्यता को भूलकर दूसरों के सभ्यता की नकल करने में कोई महानता नहीं। जिस देश ने दुनिया को भाषा का ज्ञान दिया उसी देश के लोग अपनी मूल भाषा को भूलते जा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं हमारी भाषा ‘संस्कृत’ की, जिससे विश्व की सभी भाषाओं की उत्पत्ति हुई।

संस्कृत सभी भाषाओं की जननी Sanskrit Language

संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है, लेकिन अब अलग-अलग धर्मों की अलग-अलग भाषा हो चली है। जबकि संस्कृत से ही सभी भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। संस्कृत की बदौलत ही वैदिक काल में विज्ञान आधुनिक युग की तुलना में कहीं आगे था। यह सबसे प्राचीन भाषा ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक भी है। यह भारत की ही नहीं, विश्व की भी प्राचीन भाषा है। सभी वेद, 18 पुराण वह महाकाव्य संस्कृत में ही रचे गए हैं, इसीलिए इसे देववाणी भी कहा जाता है।

संस्कृत भाषा की खोज की गई है

संस्कृत ऐसी भाषा नहीं है जिसकी रचना की गई हो, इस भाषा की खोज की गई है। सबसे पहले भारत के ही लोगों ने ऐसा सोचा कि मानव के पास अपनी कोई एक लिपियुक्त और मुकम्मल भाषा होना चाहिए। जिसके माध्यम से वह संप्रेषण और विचार-विमर्श ही नहीं कर सके बल्कि जिसका कोई वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार भी हो। ये लोग थे हिमालय के आसपास के रहने वाले। उन्होंने प्रकृति सम्मत भाषा को बोलना शुरू किया। पहली बार सोच समझकर किसी भाषा का आविष्कार हुआ था तो वह संस्कृत थी।

स्वविकसित एवं संस्कारित भाषा संस्कृत

केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है। इसीलिए इसका नाम संस्कृत है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।

इस भाषा की खोज का आधार ब्रह्मांड की विभिन्न ध्वनियां

ब्रह्मांड में हमेशा से ध्वनि और शब्द तो थे, परंतु व्यक्त नहीं हुए थे। अर्थात उसका ज्ञान नहीं था। तब उन प्राचीन ऋषियों ने मनुष्य जीवन की आध्यात्मिक एवं लौकिक उन्नति व विकास में शब्दों के महत्व और शब्दों की अमरता का गंभीर आकलन किया। उन्होंने एकाग्रचित्त हो ध्यान पूर्वक बार-बार मुख से अलग-अलग प्रकार की ध्वनियां उच्चारित कर यह जानने का प्रयास किया कि कौन सी ध्वनि मुख विवर के किस सूक्ष्म अंग से, कैसे और कहां से जन्म ले रही है। निरंतर प्रयासों के फलस्वरूप उन्होंने परिपूर्ण, पूर्ण शुद्ध एवं अनुनाद क्षमता से युक्त ध्वनियों को ही भाषा के रूप में चुना।

संस्कृत सांसो से बनी एवं स्वयं से कृत

प्राचीनतम आर्य भाषा जो ब्रह्मांड के संगीत थी उसका नाम ‘संस्कृत’ पड़ा। संस्कृत- सम्+कृत् अर्थात् श्वासों से निर्मित अथवा सांसो से बनी एवं स्वयं से कृत। ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर संप्रक से अभिव्यक्त हुई।

सूर्य के चारों ओर से भिन्न भिन्न 9-9 रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इन 36 रश्मियों के पृथ्वी के 8 वसुओं से टकराने पर 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने। इस प्रकार ब्रह्मांड की कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है।

संस्कृत के व्याकरण से ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए 

संस्कृत भाषा के व्याकरण ने विश्व भर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है। उसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं। 3000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी, तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिनि ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो ‘संस्कृत’ का था इसका नाम अष्टाध्यायी है।

संस्कृत सभी भाषाओं की जननी – नासा ने भी स्वीकार किया

आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाषा कंप्यूटर के उपयोग के लिए सर्वोत्तम भाषा है। संस्कृत की सर्वोत्तम शब्द विन्यास युक्ति के, गणित के, कंप्यूटर आदि के स्तर पर नासा व अन्य वैज्ञानिक व भाषाविद संस्थाओं ने भी इस भाषा को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा मानते हुए इसका अध्ययन आरंभ कराया है और भविष्य में भाषा क्रांति के माध्यम से आने वाला समय संस्कृत का बताया है।

संस्कृत केवल पूजा पाठ के लिए ही महत्वपूर्ण है ऐसा मानना उचित नहीं

संस्कृत को केवल पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण मानना सर्वथा अनुचित है। इस सोच को बदलने की आवश्यकता है क्योंकि वेदों और उपनिषदों की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। जिसमें मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र की व्याख्या की गई है।

ऋग्वेद सामान्य दिनचर्या, जीवन यापन। सामवेद संगीत शास्त्र। यजुर्वेद वैदिक रीति रिवाज, पूजन विधि और अथर्ववेद वाणिज्यिक सफलता को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

कुछ लोग जो अंग्रेजी बोलने में गौरव का अनुभव करते हैं और संस्कृत में दोष गिनाते हैं उन्हें नासा की वेबसाइट पर जाकर संस्कृत का महत्व क्या है अवश्य पढ़ना चाहिए और अपने देश की गरिमा को समझना चाहिए।

By कुनमुन सिन्हा

शुरू से ही लेखन का शौक रखने वाली कुनमुन सिन्हा एक हाउस वाइफ हैं।

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