सीखा है जननी से – Kavita in Hindi
अस्लाह भरपूर रखते है,
अचूक अर्जुन हमारे है।।
है अंगद भी इस मिट्टी का,
जन्मा भीम सा बलवान यहीं ।।
फिर भी सीखा है जननी से
सहनशीलता का पाठ यहीं।
सजदा करते देखा है
भिन्न धर्म को एक साथ यहीं।।
जब खिली लालिमा आसमा में
तो सुना अज़ान ‘औ’ अरदास यहीं।।
जब रात की काली चादर में
सोता है इंसान कहीं,
तब मैंने होते देखा है
अदालतों में इंसाफ यहीं।।
सरदार वज़ीरेआजम को ,
अब्दुल कलाम शपथ दिलाता है।
तब मैंने होते देखा है
लोकतंत्र को बलवान यहीं।।
इस लोकतंत्र की शक्ति का
मै और क्या व्याख्यान करूँ।
जब खुद मैंने देखा है
शूद्र भी महामहिम यहीं।।
लालसा नहीं है मुझको कुछ भी
बस तुझमें ही मिल जाना है,
और कभी जन्मा तो हे जननी
हर बार तुझे ही पाना है।।
और कभी जन्मा तो हे जननी
हर बार तुझे ही पाना है।।
Bohot khubbb👌👌👌👌👌👌
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