budhape ka bojh

बुढ़ापे का बोझ

ज्वर से तप रही शोभा जी को इससे पहले जीवन के इस चौथे पड़ाव (बुढ़ापे) के कड़वे सच का जरा भी अंदाजा ना था। पति दीनानाथ जी के गुजरने के महज कुछ ही दिनों बाद उन्होंने रिश्तो के इस कड़वे सच को देखा। जिस संतान को अपने खून से सींचकर पाला, बड़ा किया – वही एक दिन खून के आंसू रुलाएगा, ऐसा कभी न सोचा था।

यूं तो बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सुनने को अक्सर मिलती है ,पर शोभा जी को अपनी परवरिश पर पूरा यकीन था उनका पुत्र कभी भी उनके साथ बुरा बर्ताव नहीं करेगा।

पति जब तक जिंदा थे तब तक उनका घर स्वर्ग समान था। बेटा तो लायक था ही, बहू के लिए भी सास- ससुर ही सब कुछ थे। प्यार जताना और ढेर सारी फरमाइशें करना यह तो उन दोनों के लिए रोज की बातें थी। बेटे और बहू की फरमाइश सुनकर मन बहुत खुश हो जाया करता था, आखिर वह उनकी इकलौती संतान जो थी।

शोभा जी को कहां पता था कि यह प्यार तब तक है जब तक घर के अर्थव्यवस्था की बागडोर उनके पति के हाथों में है। शोभा जी के पति दीनानाथ जी एक कर्मठ पुरुष थे, उन्होंने अपने परिवार की सुख सुविधा में कभी कोई कमी ना आने दी। अपने सारे दायित्वों का निर्वाह हंसते हुए किया। अपनी एकलौती संतान मुकुल को अच्छी शिक्षा दिलाई।

मुकुल एक कंपनी में अच्छे पोस्ट पर कार्यरत था ,उसे अच्छी -खासी सैलरी भी मिलती थी। दीनानाथ जी और शोभा जी ने बेटे की शादी के तुरंत बाद उस पर परिवार के निर्वहन का बोझ नहीं डाला क्योंकि वे उन्हें कुछ दिनों तक सभी सुखों का अनुभव कराना चाहते थे।

दीनानाथ जी ने घर चलाने के लिए कभी भी बेटे से एक पैसा नहीं मांगा, सारे बोझ का निर्वहन स्वयं करते थे। अगर थोड़े सख्त थे तो पैसों के दुरुपयोग के मामले में, वह स्वयं भी ऐसा नहीं करते और अपने बच्चों से भी इस बात की उम्मीद रखते थे।

जब तक दीनानाथ जी जिंदा थे तब तक सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था। अचानक एक दिन दीनानाथ जी को दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसे। दीनानाथ जी के गुजरने के बाद परिवार की जिम्मेदारी मुकुल पर आ गयी। पिता द्वारा सहेजी गयी सारी संपत्ति के इकलौते हक़दार तो थे ही, माँ ने भी अपने सारे जेवर और पैसे बेटे बहु के हवाले कर दिया।

शोभा जी को कहाँ पता था कि बेटे बहु वक्त बदलते ही आँखे फेर लेंगे। जब तक शरीर ने साथ दिया, नौकरानी की तरह खटती रही। बदले में मिली तो सिर्फ उपेक्षा और तिरस्कार। बेड पर बुखार से छटपटाती शोभा जी के कानों में बहु की तीखी आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी – “जाने कब इस बोझ से पीछा छूटेगा”

By कुनमुन सिन्हा

शुरू से ही लेखन का शौक रखने वाली कुनमुन सिन्हा एक हाउस वाइफ हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *