laghu katha bandhan

Laghu Katha Lekhan

लघु कथा : बंधन

“सुनती हो! अपने  दोस्त अखिल ने  भी अमेरिका की कंपनी ज्वाइन कर ली है, अगले महीने शिफ्ट हो जाएगा सपरिवार। सोचता हूँ मैं भी अप्लाई कर ही दूँ। यहाँ क्या रखा है इण्डिया में, बच्चों की जिंदगी बन जायेगी वहाँ जाकर”।

 

“पापा टोमी को भी ले चलेंगे” पास बठे मिंटू ने उचक कर कहा। “नहीं इसे चाचा के पास छोड़ देंगे” पापा बोले।

 

“और मेरा मिठ्ठू पापा”? पिंकी ने पूछा |

“उसको आजाद कर देंगे बहुत दिनों से कैद है बेचारा”।

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“कैसे जायेंगे जी, इतना आसान है क्या? हमारे साथ एक दो बंधन थोड़े ही हैं”, तिरछी नजरों से कौने में बेड पर लेटे ससुर को देखते हुए धीमे से कहती हुई सीमा अन्दर चली गई।

 

अचानक सहस्त्रों लम्बे लम्बे काँटे ससुर के बिस्तर में उग आये।

By राजेश कुमारी 'राज'

साझा काव्य सँग्रह -50 के लगभग, विभिन्न पत्र पत्रिकाओँ में सतत लेखन, आकाशवाणी नजीबाबाद से काव्य पाठ, दूरदर्शन देहरादून से काव्य पाठ अंतर्राष्टीय ब्लॉगर सम्मेलन में प्रथम आने पर तस्लीम सम्मान लखनऊ, अंतराष्ट्रीय हिंदी उत्सव सम्मान पोर्ट लुई मॉरीशस में, इस्राइल की भारतीय एम्बेसी व भारतीय सँस्कृति कोष में इनकी तीन पुस्तकें शामिल

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