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Lachar Kavita in Hindi

 

मुझमें भी लाचार बचा है : लघु कविता

हर तरफ हाहाकार मचा है,
सिर्फ अब लाचार बचा है।

ना कहीं प्रेम,
ना आराम बचा है।
लोभ – द्वेष से,
बना मन मेरा।
सिर्फ अब लाचार बचा है।।

व्यंग्यबाण सा तीर चला है,
हर कदम पर कोई अड़ा है।
देखूं जब भी नजर घुमा कर,
प्रतिद्वंदी हर ओर खड़ा है

रात दिन की एक तस्वीर,
चाहे राजा हो या फकीर,
मतलब की दुनिया बनी अब,
पैसा ही सबसे बड़ा है।

अकेले हम अकेले तुम,
ना कोई दरमियान
ना ही दूर खड़ा है,
फिर भी मीलों सा क्यूं ये सड़क बना है?

अब रहा ना कोई आरामगाह,
ना ही वो सुकून बचा है।
झूठ की बुनियाद पे,
सच का ये संसार बसा है।

ज़िन्दगी है, मगर सब मरा पड़ा है।
प्यार है, मगर अहम् बड़ा है।
ईमान है, लेकिन
बेईमानों से ये जड़ बना है।
कविता तो मैंने गढ़ा,
पर मैंने ही क्या सब लिखा है?

समझ हो कर नासमझी भरी है,
मुझ में भी लाचार बसा है।

By Udbhav Sinha

छात्र | नवोदित रचनाकार

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