हिन्दी कविता hindi kavita
भूल गया जो प्रेम गीत मैं,
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
भटक रहा मैं युगों युगों से,
मुझको राह दिखा दो न
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
साथ तुम्हारे चल ना सका मैं
मुझे मिली बस तन्हाई,
यादें ही तो शेष बची हैं
रह गई बस अब परछाई।
मरूभूमि सी तप्त ह्रदय पर,
प्रेम सुधा बरसा दो ना।
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
गीत जो गाउँ सुरविहीन है
राग रागिनी लुप्त हुई,
अलंकार के सौंदर्य सभा भी
दिखती है अब सुप्त हुई।
अपनी चेतना से पूरित कर
चेतन गीत तुम गा दो ना,
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
दुनिया तो है लोभमयी और
क्रोधमयी और द्वेषमयी
मानवता है धूल धूसरित
सौंदर्य जगत की क्षीण हुई।
मिटा दो ये द्वेषाग्नि तुम,
चहुँ दिस स्नेह फैला दो ना।
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
गुजर गया जो पल वो हमारा
अब वैसा संसार नहीं,
बदल गई है मस्त हवाएं
पहले सा व्यवहार नहीं।
झेल सकूं मैं ये परिवर्तन,
शिला शक्ति दिलवा दो ना।
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
अमर रहे ये गीत हमारा
ऐसा मुझमे झंकार दिया,
स्नेहसिक्त मैं करूं जहां का
ऐसा मुझ में विस्तार दिया।
प्रेम अंश देकर मुझको तुम
विस्तृत और बना दो ना।
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
भूल गया जो प्रेम गीत मैं,
प्रिय वो गीत सुना दो ना।
प्रेम के संदर्भ में आपने बहुत ही खूबसूरत बातें कहीं हैं, अपने शब्दों के माध्यम से। मानवता है धूल धूसरित, प्रेम जगत की छीन हुई………बहुत ही दिलकश ।
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