Hindi Kahani – हिंदी कहानी चंपा की जीत
चंपा के पिता के चेहरे पर लज्जा और शर्म की कोई भावना नहीं है, बल्कि आज उसे अपनी बेटी के फैसले पर गर्व है।
कुछ ही दिन पहले की बात है। सभी बिरादरी वालों ने पंचायत में उसकी बेटी चंपा के अपनी मर्जी से दूसरी जाति के लड़के से शादी करने के कारण दंड स्वरूप जाति से अलग होने का फरमान सुनाया। और कहा गया कि अगर वह जाति में मिलकर रहना चाहता है तो उसे अपनी बेटी से हमेशा के लिए नाता तोड़ना पड़ेगा तथा ₹5000 पंचायत में दंड स्वरूप जमा करना होगा।
चंपा का पिता मंगलू इससे पूर्व भी समाज और बिरादरी के मान सम्मान के चक्कर में अपनी बेटी की जिंदगी को भट्टी में झोंक चुका था। अच्छी शिक्षा ना दिला कर उसकी शादी जल्द ही करवा दी गई। परंतु नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।
उसका पति शराबी और गलत विचारों वाला निकला। बेचारी चंपा लाख कोशिशों के बावजूद भी चैन से ना जी पा रही थी। मायका आने के बाद भी उसके जीवन में चैन और सुकून ना था। आस पड़ोस की कानाफूसी, तरह तरह की बातों से वह परेशान थी। घर में भी माता-पिता के अलावा किसी का व्यवहार उसके प्रति अच्छा ना था। उसकी वजह से उसके बूढ़े माता-पिता के साथ लोग दुर्व्यवहार का बहाना ढूंढते थे।
बिरादरी और घर के लोगों ने फिर से उसकी दूसरी शादी का सुझाव दिया, पर वह इस बार किसी भी कीमत पर शादी के लिए राजी ना हुई। वह लाख दुखों के बावजूद भी अपनी जिद पर अड़ी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि घर में उसे तरह-तरह की मानसिक यातनाएं दी जाने लगी। उसके माता-पिता बेबस और लाचार थे वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे उन्हें बार-बार चंपा की वह बातें याद आती,”बाबूजी मैं पढ़कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं, अभी मेरी शादी मत करो।”
आज चंपा ने मन ही मन कुछ निर्णय किया, वह अगले दिन सुबह-सुबह अपने पिता के कमरे में गई उन्हें प्रणाम करके बस स्टैंड की तरफ चल पड़ी, वहां से गाड़ी पकड़ कर वह नजदीक के शहर पहुंची और नौकरी की तलाश शुरू कर दी। चंपा दसवीं तक पढ़ी थी, इसीलिए उसे विश्वास था कि कुछ ना कुछ काम तो अवश्य ही मिल जाएगा। अंततोगत्वा उसकी तलाश पूरी हुई, उसे एक दुकान में काम मिल गया। अब उसे थोड़ी सी राहत मिली, फिर भी आगे भी बहुत सारी चुनौतियां थी।
एक दिन चंपा की मुलाकात उसके सहपाठी अमन से हुई, जो उसी शहर में नौकरी करता था। अमन बहुत ही नेक विचार वाला लड़का था। उसने चंपा की काफी मदद की तथा उसे फिर से पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार चंपा के जीवन में धीरे-धीरे खुशियां वापस आने लगी।
चंपा और अमन के विचार काफी मिलते-जुलते थे, दोनों के बीच लगाव काफी बढ़ चुका था। उन्हें इससे बेहतर जीवन साथी नहीं मिल पाता, इसीलिए दोनों ने शादी करने का निर्णय लिया। इस अंतर्जातीय विवाह को वह उसी समाज के सामने करना चाहती थी, जिसने कभी उसके जीवन को नारकीय कर दिया था। आज उसने भरी पंचायत में बिरादरी के ठेकेदारों को अपने शब्दों से निरुत्तर कर दिया। ऐसे बिरादरी की जरूरत नहीं, जो समय पर साथ ना दे सके और अपनी दरकियानुसी सोच को मान मर्यादा के नाम पर थोप दे। चंपा ने बस इतना ही कहा और पूरे गांव के सामने पंच प्रधान निरुत्तर थे।
चंपा का चेहरा एक विशिष्ट आभा से दमक रहा था, जो उसकी जीत को दर्शा रहा था।