भारत में सरोगेसी (Surrogacy)
ये जान कर बड़ी हैरानी होती है जिस देश को स्वम मां की उपमा दी जाती है। उसी देश में सरोगेसी मदर के नाम पर जननी को बच्चा जनने की मशीन मान लिया जाता है ।और फिर शुरू होता है उनकी मजबूरियों का फायदा उठा कर मां ओर बच्चो का अवैध कारोबार। क्यो के इस धंधे के बड़े बड़े व्यापारी इस बात को जानते है कि भारत जैसे देश में इसके लिए कोई सख्त कानून है ही नहीं। जी हां, सरोगेसी एक महिला और एक दंपती के बीच का एक एग्रीमेंट होता है, जो अपना खुद का बच्चा चाहता है। सामान्य शब्दों में अगर कहे तो सरोगेसी का मतलब है कि बच्चे के जन्म तक एक महिला की किराए की कोख।
सरोगेसी मदर की कई अनकही चुनौतियां से सरोकार किसको-
सफ़र शुरू होता है ऐसी मजबूर महिला को ढूंढने से जो अपने पेट के हांथों लाचार हो फिर उसे चंद रुपयों का लालच देकर उसको इसके लिए तैयर किया जाता है, वह भी उसको बिना उसके अधिकारों की जानकारी दिए। गरीब और अनपढ़ महिला को ये तो बता दिया जाता है कि उसको इसके एवज में पैसा मिलेगा पर इस से उसके सेहत पर क्या दुष्परिणाम होंगे इसके बारे में नहीं बताया जाता। ना ही शुरुवाती गर्भावस्था के दौर मै उनसे किसी भी प्रकार का कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है ताकि शुरुवाती गर्भावस्था की चुनौतियों से पल्ला झाड़ा जा सके। यदि महिला किसी तरह बच्चे को सकुशल जन्म दे देती है तब उस गरीब और लाचार जननी को अस्पताल से छुट्टी कर उसके हाल पर जीने के लिए छोड़ दिया जाता हा ।वह भी उन विषम परिस्थितयों में, जब उसको आराम और पौष्टिक आहार की सख्त जरूरत होती है। वह रोज अस्पताल के चक्कर काटती है वादे मुताबिक पैसा लेने के लिए, पर अस्पतालों का कुछ व्यापारी वर्ग फिर किसी किराये की कोख तलाश करने में या संतानहीन दम्पति से पैसा नोचने में व्यस्त रहता है।
नवजात का सफ़र (अस्पताल से अनाथालय तक) –
यदि नवजात को उसके कथित मां पिता उसको अपने साथ ले गए तब तो ठीक, यदि किसी तरह बच्चा अपंग या अविकसित या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हुआ या किसी अन्य कारणों से उसके कथित मां पिता उसको लेने नहीं आते तो उस शोरूम(अस्पताल) में बिकने को तैयार उस नवजात को सेकंड हैंड बना कर दूसरे शोरूम (अनाथालय) में पुनः बिक्री के लिए प्रदर्शनी में रख दिया जाता है। उसका आने वाला भविष्य अब उसके पूर्व जन्म के कार्मो पर निर्भर करता है कि उसको कब कोई अच्छा सौदेबाज मिल सके।।
नागरिकता की लड़ाई –
उस अभागे नवजात के सफ़र कि चुनौतियों तब और बढ़ जाती है जब सेरोगेसी से उत्पन्न हुआ वह बच्चे के जैविक माता पिता विदेशी हो ओर वह किसी कारण वश उसके जन्म के बाद उसको लेने नहीं आते तब उस नवजात का दंगल शुरू होता इस देश के प्रजातंत्र से। ऐसा बच्चा ना तो भारत के संविधान( आर्टिकल 5-11) के हिसाब से हिंदुस्तानी बन पाता है ना ही अपने कथित मां पिता के देश की नागरिकता ले पाता है । जब वह नवजात वयस्क होता हा तो अपनी पहचान पाने के लिए संघर्ष करता है, तब तक उसका सुंदर जीवन का सपना नर्क हो चुका होता है । ना तो उसके पास मौलिक अधिकार रहते है ना ही खुद की अलग पहचान।।
उच्चतम न्यायलय की नज़र से –
सरोगेसी को लेकर हिंदुस्तान मै एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मनिनीय न्यालय के सामने एक ऐसा मामला आया जिसने सारे देश की देर से ही सही पर आंखे खोल दी । बेबी मंजी यमदा vs यूनियन ऑफ इंडिया 2008 जिसमे न्यायलय के सामने जापानी दंपत्ति अपने नवजात बच्चे (हिन्दुस्तानी महिला से सेरोगेसी द्वारा प्राप्त संतान) को अपने साथ जापान लेकर जाने के लिए भारत सरकार से बच्चे के लिए यात्रा संबंधी जरूरी दस्तावेज मांगे (पासपोर्ट, वीसा, पहचान पत्र, इत्यादि) तब हमारे देश मे सेरोगेसी के व्यवसायीकरण को लेकर चिंता तो उत्पन हुई पर मानिनिये न्यालय भी इस मामले में किसी प्रकार के डायरेक्शन देने से कतराता रहा i ओर ये कह कर मामले को निपटा दिया गया कि इस संदर्भ मै वह बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 के अनुसार आयोग के पास जा सकते है एवं यात्रा संबंधी दस्तावेज के उपर ये कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि नवजात का पासपोर्ट आवेदन अभी भारत सरकार के पास विचार धीन है अतः इस पर किसी भी प्रकार का आदेश नहीं दिया जा सकता ।।
क्या मानव अधिकार आयोग/बाल विकास आयोग/एवं अन्य का गठन ही काफी है –
मुझे यह जान कर काफी हर्ष होता है कि हमारे देश मे मानव अधिकार बाल संरक्षण आयोग एवं अन्य को लेकर कानून है,ओर उस से भी ज्यादा प्रफुल्लित होता हूं राज्य ओर केंद्र सरकार इन आयोगों के लिए हजारों करोड़ रुपया का बजट में प्रावधान रखना। क्या केवल बजट आवंटन ही मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए काफी है इस विषय पर हम सबको गंभीरता से सोचना चाइए।।
संसद के गलियारों से –
“सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2019”
ये बिल लोकसभा से पारित तो हुआ पर फिर राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमियों के कारण संसदीय कमेटी के पास विचार के लिए भेज दिया। इस बिल मै निसंदेह कुछ ऐसे जरूरी बिदु रखे गए है जो इस गोरख धंधे पर लगाम लगा सकते है उनमें से कुछ मै आपसे साझा करता हूं।।
1- केवल दंपत्ति के करीबी रिश्तेदार या परिवार वाले ही सेरोगेसी कर सकते है।
2- भारतीय होना जरूरी है
3- कॉन्ट्रैक्ट गर्भ अवस्था के शुरुवाती दौर में ही किया जाए
4- दंपत्ति का शादी शुदा होना अनिवार्य है।
5- चिकत्सक द्वारा यह प्रमाणित होना चाइए की दंपत्ति प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण नहीं कर सकते (शादी के 5 साल बाद)।
6- अलग से कमीसन गठन करने की बात करी गई है।
7- नियमों के उलंघन करने पर सजा का प्रावधान रखा गया है
सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2020 की कुछ प्रमुख बिंदु एवं मेरे सुझाव –
संसदीय कमिटी ने बिल में कुछ बदलाव के साथ अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को पेश की जो एक बार फिर कागजों मै लोकसभा में पारित हो गया और राज्यसभा मै पारित होने की टक टकी लगाए बैठा है। नए बिल में मुख्यत निम्न बदलाव किए गए है
1- करीबी रिश्तेदारों के द्वारा ही सेरोगेसी के प्रावधान को हटा दिया गया। ऐसा करने से कानून के मुख्य उद्देश सेरोगेसी मै चल रहे अवैध कारोबार पर रोक लगाने के सरकारी उद्देशों पर सवाल खड़ा करती है।
2-सेरोगेसी के लिए वैवाहिक दंपत्ति के साथ होने के प्रावधान को हटा दिया गया अतः एकल महिला (तलाकशुदा, विधवा अन्य ) को भी सरोगेसी से बच्चा अडॉप्ट करने का प्रावधान जोड़ा गया। यह प्रावधान जोड़ते समय शायद सरकार महिला की न्यूनतम आय/रोजगार/ पर प्रावधान बनाने से चूक गई, अतः ऐसा करने से बच्चे की परवरिश ओर उसके भविष्य पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
2- विवाहित दंपत्ति पर समय सीमा के प्रावधान (वेटिंग पीरियड) हटा दिया गया।
3- NRI के बारे में इस बिल में कहीं जिक्र नहीं किया गया जो इन भारतीयों के साथ अन्याय के समान है अतः सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।
4- दंपत्ति पर सेरोगेसी द्वारा बच्चे अडॉप्ट करने की संख्या का निर्धारण होना चाइए ।
5- कुछ धन राशि संविदा करते समय ही जैविक माता पिता से अजन्मे बच्चे के नाम करने का प्रावधान होना चाइए ताकि किसी विषम परिस्थिति(जैविक माता पिता की मृत्यु हो जाना) में भी नवजात का लालन पोषण हो सके।
शर्मशार होता लोकतंत्र –
कानून का ही एक बड़ा प्रसिद्ध सिद्धांत है “न्याय में देरी न्याय से वंचित है” ऐसे में जब इस कानून की जरूरत देश को काफी सालो पहले थी पर फिर भी देर आए दुरुस्त आए के सिद्धांत को मानते हुए चले तो सरकार की पहल प्रशंसनीय थी, पर आज बिल पेश होने के इतने वर्षो बाद भी क्यो इसको आज तक कानून की शक्ल नहीं मिल पाई। मेरी आंखे शर्म से नीची हो जाती है जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र मै इन नवजातों को उनके मौलिक अधिकारो से वंचित देखता हूं।मेरा मन करुणा से भर उठता है जब एक जननी को 2 वक्त की रोटी के लिए अपने स्वास्थ्य से समझौता करना पड़ता है। आज हमारे देश में ये चर्चाएं तो आम ओर महत्वपूर्ण हो गई है कि सचिन पायलट सरकार गिरा पाएंगे कि नहीं, कमलनाथ वापस सरकार बना पाएंगे कि नहीं। बड़े बड़े महाविद्यालयों में अध्ययन करने वाले बुद्धिजीवी सड़कों पर आजादी का नारा लगा सकते है। संविधान के प्रख्यात पंडित हमारे अधिवक्ता गण 370 हटाने के विरोध में उच्चतम न्यायालय में पेटिशन दायर कर सकते है। कसाब और निर्भया के हत्यारों के मानव अधिकारों के लिए आधी रात में भी न्यायालयों में प्रजातंत्र का संख नाद हो सकता है। तो हमारे देश में सरोगेसी को लेकर सख्त कानून पर बात कभी क्यो नही होती।हालाँकि परिवार और कल्याण मंत्रालय द्वारा इस पर एक बिल ” सरोगेसी रेगुलेशन बिल ” लाने की एक सुस्त पहल करी गई, लेकिन यह कामचलाऊ कदम है जो आज तक एक्ट बनने की राह ताके हुए है । जहां एक ओर दुनिया के कई सारे देशों रूस, जापान, इटली, अफ्रीका के लगभग सारे देश, अमेरिका, चीन, नेपाल, ओर भी दर्जनों देशों में सरोगेसी एक अपराध की श्रेणी में आता है और सरकार ने उस पर कड़े प्रतिबंध लगा कर रखे हुए है तो भारत जैसे देश में जहां जननी को जान से भी ज्यादा प्रिय माना जाता है तो क्यो उस जननी की जान की चर्चा तक तक इस देश में नहीं होती ,क्यो उस बेकसूर नवजात को उसकी पहचान से वंचित रखा जाता है ।आज जरूरत हमको इस पर गंभीर रूप से चिंतन ओर मंथन करने की ताकि भारत “मां” के शब्द को चरितार्थ किया जा सके।।
आपका
रुचिर पंडित