सफेद रंग शांति समृद्धि का प्रतीक माना गया, परन्तु काला रंग शोक का
समाज में सदियों से काले गोरों को लेकर एक रंगभेद सा पक्षपात रहा है – चाहे वो भारत की बात हो या दूसरे किसी अन्य देश में हो। यह भेद सिर्फ इंसानों को लेकर नहीं है बल्कि आम जीवन में प्रयोग में लाये जाने वाले वस्तुओं को लेकर भी है। सफेद उजाला है तो काला अँधेरा। सफेद रंग शांति समृद्धि का प्रतीक माना गया परन्तु काला रंग शोक का। काला रंग नकारात्मकता का आभाष दिलाता है – यह प्रायः लोग मानते हैं। किसी भी शुभ मुहूर्त में काले रंग का कपड़ा पहनना अशुभ समझा जाता रहा है। हालाँकि हाल के दिनों में लोगों की अवधारणा बदली है – इस रंगभेद पर समाज थोड़ा उदार हुआ है। शादी ब्याह में भी महिलाएं, जो पहले काले रंग की साड़ियां या कपड़े पहनने से परहेज करती थी, अब गाहे बगाहे दिख जाती हैं काले रंग के कपड़े में भी। सच तो यह है कि काला रंग में भी कुछ ऐसे विशेष कारक हैं जो लोगों के लिए शुभ मंगलकारी (Auspicious) भी हैं – चलिए नज़र डालते हैं ऐसे ही कुछ काले सोने पर –
काला गेंहूं डायबिटीज़ के मरीजों के लिए बहुत ही फायदेमंद है
काले गेहूं के बारे में बहुत से लोग अनजान हैं पर मध्यप्रदेश में कुछ किसानों ने इसकी खेती भी शुरू कर दी है और इसकी मुंहमांगी कीमत वसूल रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि काला गेंहूं डायबिटीज़ के मरीजों के लिए बहुत ही फायदेमंद है। काले गेहूं में सामान्य गेहूं के अपेक्षा अधिक आयरन होता है। इसमें अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्व पाये जाते हैं।
यूपी में लोगो ने काले अमरूद का नाम काला बादशाह रखा हैं
दुनिया में बहुत तरह के फल पाए जाते हैं और उनमे अमरुद बहुतों का पसंदीदा फल है। आमतौर पर यह हरा, पीला और लाल रंग के ही होते हैं। बहुत लोगों को पता नहीं है कि काले रंग का अमरुद भी होता है। यूपी के मलीहबाद में काले अमरूद होते हैं तथा यूपी में लोगो ने काले अमरूद का नाम काला बादशाह रखा हैं। हरे अमरूद के मुकाबले काले अमरूद अधिक मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। साथ ही साथ काले अमरूद दुर्गम मिट्टी में बहुत जल्दी पनपते हैं। परन्तु ये खाने में जितना स्वादिष्ट है उतनी ही मेहनत इसे उगाने में लगती हैं। काले अमरूद का पेड़ लगाने में बहुत मेहनत लगती हैं। काले अमरूद बहुत महंगे बिकते हैं साथ ही साथ बाज़ारो में इसकी बहुत डिमांड भी रहती हैं।
कड़कनाथ काले रंग के मुर्गे को कहा जाता है जोकि मध्यप्रदेश के झाबुआ में पाया जाने वाला प्रजाति है
मांसाहारियों के लिए कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गा मुर्गियों को लेकर उत्सुकता बढ़ गयी है। दरअसल कड़कनाथ काले रंग के मुर्गे को कहा जाता है जोकि मध्यप्रदेश के झाबुआ जिला में मूलतः पाया जाने वाला प्रजाति है। आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ में स्थानीय लोग इस मुर्गे को काली मासी कहते हैं। इसके मांस की पहचान इसके औषधीय गुण, लो फैट, हमेशा दिमाग में बस जाने वाला लजीज स्वाद के लिए देश विदेश में हो चुकी है। कड़कनाथ मुर्गा में कालापन इतना होता है कि इसके चोंच, कलंगी, पैर, नाख़ून, पंख आदि भी काला होता है यहाँ तक कि इसका अंडा, मांस और खून भी काला होता है। इसके मांस में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा पायी जाती है और ह्रदय रोगियों और डायबिटीज़ रोगियों के लिए यह रामबाण है।