हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले बेल कई रोगों के उपचार में मददगार है।
भगवान शिव को बेलपत्र कितना प्रिय है प्रायः प्रत्येक हिंदू जानता है। बेलपत्र की आकृति भी शिव के त्रिशूल जैसी ही है। शिव को परम प्रिय होने के कारण ही इसका पर्याय “शिवद्रुम” है। इस त्रिवलीय बेलपत्र में त्रिदेवों का वास माना जाता है।
मानव जीवन में इसके धार्मिक महत्व तो है ही, औषधीय महत्त्व भी कुछ कम नहीं है। धार्मिक महत्व के अनुसार ऐसा मानना है कि इसके वृक्ष की छाया में तपस्या से शीघ्र मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है। इसके फल एवं पत्ते के सेवन से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मनुष्य योग साधना के पथ पर अग्रसर होता है। मां पार्वती ने महादेव को पाने के लिए ऐसा किया था, जिसका वर्णन ग्रंथों में मिलता है।
नेपाल में इसका बहुत आदर होता है। भगवान पशुपतिनाथ की भांति बेल को भी वहां सभी पूर्ण सम्मान देते हैं। नेपाल के बांदीपुर नामक स्थान पर प्रति 10 वर्ष पश्चात एक समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें कन्याओं के सामूहिक विवाह बिल्ब फल से संपन्न कराने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। नेपालियों की यह मान्यता है कि कन्याओं का विवाह पवित्र बेल से कराने पर वैधव्य दुख नहीं भोगती और आजीवन सुखी रहती है।
औषधि के रूप में इसकी उपादेयता प्रसिद्ध है। जिसकी चर्चा भगवान चरक और महर्षि सुश्रुत ने भी किया है। आचार्य भाव मिश्र ने अपने निघंटूग्रंथ में इसका वर्णन किया है। आचार्य प्रियव्रत शर्मा ने ग्राही द्रव्य में इसको प्रथम स्थान दिया है।
दलजीत सिंह के अनुसार बेल गर्म और खुश्क होने से ग्राही है व पेचिश में लाभदायक है। मृदुविरेचक और हृदय व मस्तिष्क के लिए शक्ति वर्धक होता है।
होम्योपैथी मत के अनुसार बेल के फल वह पत्र दोनों को समान गुण वाला मानते हैं। खूनी बवासीर व पुरानी पेचिश में इसका प्रयोग बहुत लाभदायक होता है।
बेल के विभिन्न नाम
प्राकृतिक वर्गीकरण के अनुसार यह जम्बीर कुल (रुटेसी) का है। संस्कृत- बिल्ब, श्रीफल। हिंदी- बेल। गुजराती- बिली। पंजाबी-बिल। बांग्ला- बेल। अंग्रेजी- बेल (Bael)। लैटिन-ईग्ल मर्मिलस (aegle marmelos)।
प्राप्ति स्थान- भारत में प्रायः सर्वत्र बाग बगीचों में लगाया जाता है। बंगाल, बिहार, हिमालय की तराई में इसके जंगल है।
इसमें पाए जाने वाले रासायनिक संगठन (chemical composition)- इसके फलों में बिल्वीन या मार्मेलोसिंन नामक तत्व पाया जाता है। इसके फलों में राइबोफ्लेविन की मात्रा अन्य फलों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है। म्यूसिलेज, पेक्टिन, शर्करा, टैनिन्स, तथा तिक्त तेल पाए जाते हैं।
बेल के फल, पत्ते, मूल एवं छाल औषधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं। अतिसार, हृदय रोग, प्रमेह, वात रोग, ज्वर आदि के उपचार में इससे बने औषधि का उपयोग किया जाता है। बिल्वादि क्वाथ, बिल्वादि चूर्ण, बिल्वादि तेल इत्यादि इससे तैयार किए जाते हैं। जो विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग में लाए जाते हैं।
इसे भी पढ़ें केवल सुंदरता और सुगंध ही नहीं औषधीय गुणों से भी भरा है फूलों का राजा गुलाब
इसके कुछ लाभदायक प्रयोग- bel patra ke fayde
० बालों के लिए-बेलगिरी के क्वाथ से सिर धोने से बालों में होने वाले रूसी समाप्त होकर बाल मजबूत होते हैं।
० मच्छर भगाना- बेल के फल के सूखे छिलकों को आग के अंगारों पर डालें इस की दुआ से मच्छर भाग जाते हैं।
० पसीने की दुर्गंध- बेलगिरी और हरड़ के चूर्ण को पानी में पीसकर लेप करने से पसीने की दुर्गंध दूर होती है।
० दाह- बेलपत्र पीस मोटा लेट करें।
० सूजन या शोथ- पत्र स्वरस को गर्म कर लेप करें।
० सिर दर्द- पत्र स्वरस से कपड़े को भिगोकर उसकी पट्टी सिर पर रखें, सूखने पर पुनः ऐसा करें।
० गंडमाला- बेल के कोमल पत्तों को पीस उसमें थोड़ा शुद्ध घी मिलाकर आग पर गर्म कर गंडमाला की ग्रंथियों पर दिन में दो बार बांधे।
० मुखपाक- हरे बेल की गिरी का पानी में उबालकर कुल्ला करना हितकारी है।
० मधुमेह- बेलपत्र, नीम पत्र, 10 -10 नग को पीस कर कल्क बना कर लें।
० अजीर्ण- बेलगिरी में इमली मिलाकर पना बनाकर उस में दही मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण मिटता है।
० अतिसार- बेलगिरी 5 ग्राम तथा गुड़ 5 ग्राम मिश्रण कर सेवन करने से रक्तातिसार, आमशूल तथा अन्य उदर रोग मिटता है।
अपने बगीचे में इसे लगाकर स्वाद और स्वास्थ्य दोनों का लाभ उठाएं।