पान का ऐतिहासिक, साहित्यिक और औषधीय महत्त्व (Pan ka Mahatva)
प्रकृति ने हमें बहुत सारी ऐसी वनस्पतियां दी हैं, जिन से सभी लोग भली-भांति परिचित तो होते हैं, पर उनका सही उपयोग हर किसी को मालूम नहीं होता। ऐसी ही एक वनस्पति है “पान”। जिससे हर कोई अवगत है, आपने अपने जीवन काल में कभी न कभी शौक से पान का बीड़ा जरूर चबाया होगा।
सम्मानसूचक, स्वाभिमान को बढ़ाने वाला, साहित्यिक महत्व रखने वाला ‘पान’ बहुत सारी औषधीय गुणों का स्वामी है।
इतिहास साक्षी है कि रणबांकुरे राजपूतों में पहले यह परंपरा थी कि किसी महत्वपूर्ण कार्य को रोकने के लिए सोने की तश्तरी में पान का बीड़ा रखकर लाया जाता था। स्वाभिमानी व्यक्ति स्वाभिमान को व्यक्त करने के लिए उस बीड़े को उठाना और वह उस कार्य को करने की पूर्ण जिम्मेदारी लेता था। “काम का बीड़ा उठाना” इसी कारण यह मुहावरा अस्तित्व में आया।
प्राचीन ग्रंथों के अवलोकन से यह विदित होता है कि तांबूल (पान) सेवन की प्रथा पुरातन काल से ही चली आ रही है। हिंदू धर्म शुभ कार्य में इसे मंगलसूचक मानते हैं। हमारे पूर्वजों ने भोजन उपरांत पान खाना स्वास्थ्यप्रद माना है। प्राचीन ऐतिहासिक एवं साहित्य ग्रंथों में इसका प्रचूर वर्णन मिलता है।
साहित्य में तांबूल का वर्णन
तांबूलवल्ली (पान की लता) और तांबूल सेवन (पान खाना) दोनों का ही साहित्य में वर्णन मिलता है। हिंदी साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने तांबूल सेवन सात्विक आहार कहा है। उनके एक शिष्य के द्वारा लिखित लेख में यह वर्णित है कि द्विवेदी जी सत्तू के भोजन पर तांबूल सेवन के सुख को तो स्वर्ग में भी दुर्लभ समझते थे। इन दोनों को देखते ही उनकी जिह्वा से सरस्वती रस बरसाने लगती थी। बाणभट्ट की तरह मनमौजी, कबीर की तरह फक्कड़, तुलसी की तरह समन्यवादी, रविंद्र की तरह मानवतावादी, निराला की तरह आत्मसम्मानी तथा सूर् की भांति संवेदनशील उनके व्यक्तित्व में सत्तू और पान का अद्भुत योगदान था।
पान की उत्पत्ति के संबंध में बरई (तमोली, पान का धंधा करने वाले) लोगों में यह कथा किवदंती के रूप में प्रसिद्ध है कि महाभारत युद्धोपरांत जब पांडवों का अश्वमेध यज्ञ के मांगलिक कामार्थ, इस प्रकार के विशिष्ट द्रव्य की आवश्यकता प्रतीत हुई, तब उन्होंने पाताल लोक में इसकी प्राप्ति के लिए वासुकी नाग के पास अपना एक दूत भेजा। वासुकी ने अपने करांगुली का अग्रभाग दिया और कहा कि इसे भूमि में रोपण कर देने से पान की लता उत्पन्न होगी। जिससे पांडवों को अभीष्ट पूर्ति होगी। पांडवों ने वैसा ही किया और उसकी उत्पत्ति हुई इसी से इसे ‘नागवल्ली’ कहा जाता है।
पान के विभिन्न नाम
इसका वानस्पतिक नाम (Botanical Name) पाइपर बीटेल (Piper Betle Linn) है। अंग्रेजी में इसे बेटल लीफ, संस्कृत में नागवल्ली, तांबूल, हिंदी में पान, गुजराती में नागर बेल, मराठी में नागवेल, ओड़िया में पानो आदि नामों से जाना जाता है।
यह बिहार, बंगाल, उड़ीसा आदि स्थानों में बहुत बोया जाता है। बनारस का पान सर्वोत्तम माना जाता है।
इस के आयुर्वेदिक गुण
धन्वंतरी निघंटू के अनुसार पान कफ,वात और कृमिनाशक होता है, यह धारणशक्ति और कामशक्ति को बढ़ाने वाला होता है।
पान में कुछ विषैले पदार्थ भी होते हैं अतः इसके उपयोग का सही तरीका ज्ञात होना आवश्यक है। खाने के लिए पुराने पान उपयुक्त होते हैं। नए पान को जल से सीच कर उपयोगी बनाया जाता है, कुछ समय पान को जल में रख दें, इसके उपरांत मोटे वस्त्र से इसे चारों ओर से रगड़ कर पुनः शुद्ध पानी से प्रक्षालन कर अनुपयोगी भाग निकालकर उपयोग में लाएं।
अत्यधिक पान का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। पान के साथ तंबाकू का सेवन हानिकारक होता है। पान के अग्र, माध्य और पीछे के भाग में विषैले तत्व अधिक होते हैं, अतः उन्हें निकालकर उपयोग में लाना चाहिए।
पान के कुछ औषधीय गुणों की चर्चा हम यहां पर करेंगे जिसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
कान के दर्द के उपचार हेतु- इसके रस को गर्म कर ठंडा हो जाने पर कान में डालें उसके पश्चात सेंक भी अवश्य करें।
श्वास रोग में- तेल के दीपक के ऊपर चालनी रख एवं कुछ पानपत्र उस पर बिछाकर गर्म कर रोगी के पार्श्व तथा वक्ष पर रखकर कपड़े से बांध दें, इससे कफ पतला होकर आसानी से निकलेगा और श्वास रोगी को आराम मिलेगा।
डिप्थीरिया रोग में- तांबूल तेल की एक बूंद 100 ग्राम पानी में मिलाकर कुल्ला (गार्गल) करने से लाभ होता है।
स्वर भंग- तांबूल लता के मूल के छोटे-छोटे टुकड़े कर मुख में रख चूसते रहने से स्वर शुद्ध होता है, गायकों के लिए उपयुक्त है।
होयसलेश्वर मंदिर – भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना
उदरकृमि – पान में शुद्ध कपूर, लोंग और जायफल डालकर भोजन के बाद सेवन करना लाभप्रद है।
क्षय रोग- पान की जड़ को कूट पीसकर छानकर मधु मिलाकर सेवन करना चाहिए।
इस प्रकार कुछ घरेलू प्रयोग करके छोटे-मोटे रोगों का उपचार करना आसान हो जाता है।
नागबल्लभ रस, तांबूल अर्क, तांबूल शरबत, तांबुलासव इत्यादि औषधियां पांन द्वारा तैयार की जाती है, जो विभिन्न रोगों के उपचार में सार्थक हैं।