बिहार की एक विशेष परंपरा : ज्येष्ठ मास में आर्द्रा नक्षत्र का स्वागत
आर्द्रा नक्षत्र के आगमन की खुशी को व्यक्त करने की अनोखी परंपरा है, हमारे बिहार में। यहां खीर, दालपूरी व आम की थाली से किया जाता है आर्द्रा का स्वागत। सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही यह परंपरा हमारी उत्सव धर्मिता को प्रदर्शित करती है।
कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण बिहार में आर्द्रा नक्षत्र का विशेष महत्व
जेठ के महीने में जब गर्मी चरम सीमा पर होती है, लोग -बाग परेशान हो ऐसे में आर्द्रा का प्रवेश कई उम्मीदें लेकर आता है। आद्र का अर्थ होता है नमी, यानि नमी से बना यह आर्द्रा नक्षत्र अपने साथ कई उम्मीदें लेकर आता है। बिहार में इस समय मानसून के आने का समय होता है। बरसा रानी की आहट गर्मी की तपिश को कम करती है, और यह किसानों के लिए लाभप्रद होती है। इस नक्षत्र के दौरान बारिश का आगमन हो जाता है।
ज्येष्ठ मास में आर्द्रा नक्षत्र का स्वागत जायकेदार दालपूरी, खीर और आम के साथ किया जाना
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है इसीलिए यहां बारिश बेहद महत्व रखती है। बारिश के आगमन से यहां की धरती की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे बेहतरीन कृषि कार्य की संभावना बलवती होती है। बारिश को लगातार बनाए रखने के लिए घरों में दालपूरी और खीर बनाए जाते हैं, चूंकि यह मौसम आमों का होता है और यहां के मालदह आम बड़े ही स्वादिष्ट होते हैं। अतः दाल पुरी खीर और आम के द्वारा इंद्रदेव को भोग लगाया जाता है, उस के बाद सपरिवार इसे लोग खाते हैं।
लोग ईश्वर से यही कामना करते हैं की बरसात यूं ही होती रहे, जिससे बेहतर कृषि संभव हो और हमारा घर समाज धन-धान्य से भरा पूरा रहे।
ardra nakshatra in hindi
आकाश मंडल में आर्द्रा छठवां नक्षत्र है। अंतरिक्ष में चंद्रमा की गति और पृथ्वी के चारों ओर घूमने की या परिक्रमा करने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। चंद्रमा पृथ्वी की पूरी परिक्रमा 27.3 दिनों में करता है और 360 डिग्री की इस परिक्रमा के दौरान सितारों के 27 समूहों के बीच से गुजरता है। चंद्रमा और सितारों के समूह के इसी तालमेल और सहयोग को नक्षत्र कहा जाता है।
हिंदू काल गणना का आधार नक्षत्र, सूर्य और चंद्र की गति पर आधारित होती है। इसमें नक्षत्र को सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। हमारे आकाश या अंतरिक्ष में 27 नक्षत्र दिखाई देते हैं।
नक्षत्र मास क्या है
आकाश में स्थित तारा समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतया यह चंद्रमा के पथ से जुड़े हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह है जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है।
वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्रमा पर 27 ही माने गए हैं। चंद्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है। जो काल नक्षत्र मास कहलाता है। यह काल नक्षत्र मास लगभग 27 दिनों का होता है, इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।
यह 27 नक्षत्र मास के नाम निम्नलिखित है- अश्विनी, भरणी, क्रितिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती।
इनमें आर्द्रा नक्षत्र छठा नक्षत्र है जिसके स्वागत की परंपरा वर्षो पुरानी है।