BJP Nationalism
वर्ष २०१४ के बाद से अब तक भाजपा को अपार जन समर्थन
राष्ट्रवाद की विचारधारा के साथ आज भाजपा ही नज़र क्यों आ रही है। जिस राष्ट्रवादी सोच की नींव देश के हर एक व्यक्ति के मन में होना चाहिए, भारत में देश हित की बातों पर कुछ लोगों को वितृष्णा का भाव दिखाने में भी कोई संकोच या डर नहीं होता है। भाजपा ने जब 2014 में अपार जन समर्थन के साथ सत्ता में वापसी किया था, तब मोदी युग की शुरुआत से ही यह तय हो चूका था कि भाजपा इसी राष्ट्रवाद को सीढ़ी बनाकर आगे की वैतरणी पार करने का मन बना चुकी है। गत 6 साल में भाजपा ने न केवल कई राज्यों में अपनी वापसी की या कुछ राज्यों में अपने स्थानीय नेताओं के अलोकप्रिय होने के बावजूद फिर से सत्ता में वापसी की। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में लोगों ने पहले से भी ज्यादा मत देकर भाजपा पर ही अपना भरोसा जताया।
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राष्ट्रवादी मुद्दे पर भाजपा का हर शासकीय मोर्चे पर पैठ और कांग्रेस का पिछड़ना
राष्ट्रवाद की विचारधारा के साथ भारत की हर शासकीय व्यवस्था में भाजपा की पैठ बढ़ने से और कांग्रेस का हर मोर्चे पर साल दर साल पिछड़ते जाने से अब यह साफ हो चूका है कि भारतीय संसद अब विपक्ष विहीन हो चला है। भारतीय सेना के शौर्य पर सवाल उठा कर, नक्सलियों का साथ देकर, भाजपा का देशहित पे किये गया हर काम पर विरोध कर – चाहे वो धारा 370 की बात हो, CAA NRC की बात हो, कश्मीरी अलगाववादियों को समर्थन कर कांग्रेस ने अपनी स्थिति को इस कदर कमजोर लिया है, जो कायदे से इसे अदद विपक्ष भी नहीं कहा जा सकता। मोदी युग में राष्ट्रहित में सोचने वाले लोगों की नाराजगी भाजपा से भले ही हो, पर कांग्रेस के अलावा हर राज्यों में मौजूद हर विपक्षी दलों का भाजपा को घेरने के चक्कर में राष्ट्रविरोधी सुरों में सुर मिलाने की मंशा देखकर, थकहार कर लोगों ने भाजपा को ही वोट किया।
भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य यह है या तो लोग भाजपा के साथ हैं या भाजपा के साथ नहीं हैं, अगर विचार राष्ट्रवाद का हो
भारतीय राजनीति का वर्तमान परिदृश्य यह है या तो लोग भाजपा के साथ हैं या भाजपा के साथ नहीं हैं। और जो भाजपा के साथ नहीं हैं वो वोट ध्रुवीकरण को ध्यान में रखकर ही पार्टी का चयन करते हैं – वे या तो कांग्रेस के साथ होते हैं या उस राज्य में भाजपा को टक्कर देने वाली क्षेत्रीय दलों के साथ। हाल ही में शिवसेना ने राजग गठबंधन से खुद को अलग करने के बाद राष्ट्रहित वाली सोच को भी अपनी विचारधारा से अलग कर दिया है। लोकसभा हो या विधानसभा, राष्ट्रवाद ने विपक्ष को इसतरह विघटित कर दिया है कि गैर भाजपाईयों का अपना कोई दल ही नहीं है। नेताओं के दलबदल से ज्यादा वोटरों की दलबदली ने भारतीय राजनीति में एक प्रश्न खड़ा कर दिया है कि भाजपा विरोधी अन्य दल क्या राष्ट्रहित में सोच भाजपा का विरोध नहीं कर सकते। कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों को अपनी स्ट्रेटेजी को फिर से बनाना होगा ताकि लोगों के पास कम से कम एक और विकल्प दिखे, अगर विचार राष्ट्रवाद का हो।
Bohot accha likha apna