Vishnu Tiwari Ke Wo Bis Sal
विष्णु तिवारी के वो बीस साल
ललितपुर के थाना महरौनी के गांव सिलावन निवासी विष्णु जेल से रिहा होकर करीब बीस साल बाद अपने घर लौट रहा था और रास्ते भर वह बचपन से जवानी तक सिलावन गांव में बिताया हर पल को याद कर रहा था। वह केंट स्टेशन से ललितपुर जाने वाली ट्रैन में बैठ बड़ा बेताब था अपने बचे रिश्तेदारों से मिलने को और उस घर को देखने को, जहाँ उसने तेईस साल बिताये थे। साढ़े बारह बजे रात जब वो ललितपुर स्टेशन पर ट्रेन से उतरा तो भाई महेंद्र तिवारी और भतीजा सतेंद्र उसका इंतज़ार कर रहे थे।
पूरे बीस साल तक विष्णु तिवारी को झूठे केस में जेल में रहना पड़ा और पिछले दिनों इलाहबाद हाई कोर्ट ने उसे निर्दोष मानते हुए रिहा कर दिया।
क़ानूनी धाराओं का दुरूपयोग
आईपीसी (IPC) और एससी / एसटी एक्ट (SC/ST Act) के तहत बलात्कार और दलित उत्पीड़न के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद वह व्यक्ति पिछले दो दशकों से आगरा जेल में बंद था। क़ानूनी धाराओं का दुरूपयोग कर कोई किस तरह से मिथ्या आरोप लगाकर किसी व्यक्ति की जिंदगी तबाह कर सकता है, विष्णु इसका जीता जगता उदहारण हैं।
इस कारावास की अवधि के दौरान, उनके माता-पिता और दो भाइयों की मृत्यु हो गई लेकिन उन्हें उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई।
खबरों के मुताबिक, ललितपुर जिले की एक दलित महिला ने सितंबर 2000 में तब 23 वर्षीय विष्णु तिवारी बलात्कार का आरोप लगाया था। पुलिस ने विष्णु तिवारी पर IPC की धारा 376, 506 और धारा 3 (1) (xii), 3 (2) (v) के तहत अत्याचार अधिनियम की धारा (6) के तहत मामला दर्ज किया था। मामले की जांच तत्कालीन नरहट सर्कल अधिकारी अखिलेश नारायण सिंह ने की, जिन्होंने विष्णु के खिलाफ अपनी रिपोर्ट दी। आरोपी को सत्र अदालत (सेशन कोर्ट) ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में उन्हें आगरा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था।
हाई कोर्ट ने माना अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था
विष्णु ने 2005 में उच्च न्यायालय में सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की लेकिन किसी तरह यह मामला 16 साल तक ‘डिफेक्टिव ‘ बना रहा और इस पर सुनवाई नहीं हो सकी। बाद में, राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण ने वकील श्वेता सिंह राणा को अपना बचाव पक्ष का वकील नियुक्त किया।
28 जनवरी को जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और गौतम चौधरी सहित उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा, “तथ्यों और रिकॉर्ड पर सबूतों को देखते हुए, हम आश्वस्त हैं कि अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था, इसलिए, परीक्षण अदालत के फैसले और लगाए गए आदेश को उलट दिया गया है और आरोपी को बरी कर दिया गया है। आरोपी- अपीलकर्ता, अगर किसी अन्य मामले में वारंट नहीं किया गया है, तो उसे तुरंत मुक्त कर दिया जाएगा।”
दुष्कर्म के गलत आरोप से परिवार हुआ तबाह
विष्णु के भतीजे सतेंद्र के अनुसार, “मेरे चाचा के दुर्भाग्य ने हमारे पूरे परिवार को, आर्थिक और सामाजिक रूप से दोनों को तोड़ दिया है। मैंने अपने पिता, चाचा और दादा-दादी को खो दिया, जिनकी सदमे और सामाजिक कलंक के कारण मृत्यु हो गई।
विवाद भी रास्ते में गाय को बांध देने से हुआ था, जिसे विपक्षियों ने बाद में तूल देते हुए मामले को घुमा कर तीन दिन बाद विष्णु पर बलात्कार का आरोप लगा दिया। मेडिकल रिपोर्ट में भी कोई साक्ष्य नहीं मिला था।
भले ही दोषी छूट जाये पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए
कानूनी जानकार हमेशा से ही यही मानते हैं कि जज की यह जिम्मेदारी है जो भले ही दोषी छूट जाये पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। लेकिन विष्णु जैसे न जाने कितने लोगों के लिए यह सिद्धांत केवल मिथक बनकर रह जाता है। विष्णु के इस हालात से संज्ञान ले क्या अदालत अन्तः निरीक्षण करेगी, क्योंकि विष्णु को बेगुनाह बता देने से मूल समस्या का समाधान नहीं हो पायेगा। क्या उस दलित महिला को सजा नहीं मिलनी चाहिए जिसने गलत आरोप मढ़ा। क्या उन पुलिस वालों को कठघरे में नहीं लाना चाहिए जिन्होंने ने सब कुछ जानते समझते प्रथम द्रष्टया विष्णु को गलत साबित कर दिया था।
एक बहस जरूर शुरू हो गयी है कुछ गैर जरुरी कानूनों को ध्वस्त कर देने की, पर विष्णु तिवारी के वो बीस साल कभी वापस नहीं आने वाले।