पहले पांच साल और उसके बाद के एकाध वर्षों को छोड़ दें तो नीतीश कुमार ज्यादातर अपनी कुर्सी बचाने की ही राजनीति करते आए हैं. इतिहास में उनकी सियासत की व्याख्या ऐसे ही की जाएगी. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने जंगलराज के अपराध से राज्य को मुक्ति दिलाई. कई ऐसे फैसले लिए जिससे शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को बल मिला. सड़क और बिजली को लेकर विकास के कार्य भी हुए. लेकिन क्या 15 सालों में इससे ज्यादा नहीं हो सकता था? क्या 15 सालों में बिहार का कायाकल्प नहीं हो सकता था?
दुनिया छोड़िए भारत में ही ऐसी कई मिसालें मौजूद हैं, जहां सरकारों ने अपने राज्यों की तस्वीर बदल दी. लेकिन बिहार को क्या मिला: बेहतर भविष्य का कभी ना खत्म होने वाला भरोसा, रोजगार के खोखले वायदे, गरीबी, पलायन, मजदूरी, बाढ़, बीमारी, भुखमरी, कुपोषण, जातीय संघर्ष, तृतीय श्रेणी का दर्जा, बदनामी, हिकारत, हीन भावना और अपराध के लौटने का डर.
अब ये वोटगणित हो या कुछ और कुछ बातें स्पष्ट हो चुकीं हैं. पहला कि भावी मुख्यमंत्री की पार्टी अब राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी है. दूसरा ये कि तेजस्वी यादव की आरजेडी एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी जरूर बनी, लेकिन पिछली बार के मुकाबले घाटे में रही. यानी जातीय समीकरण की तमाम रणनीति और बड़े वायदों के बावजूद वो पूरे प्रदेश की जनता का विश्वास जीतने में नाकाम रहे. उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें और मेहनत करनी होगी और आवेश पर काबू रखना होगा, सेल्फी लेने की कोशिश करने वाले किसी प्रशंसक के साथ हाथापाई करना उनकी राजनीतिक अपरिवक्ता का ही संकेत देती है.
तीसरी बात ये कि बीजेपी नि:संदेह इस चुनाव में सबसे बड़ी विजेता बनकर उभरी है. क्योंकि उसके खाते में इस बार 21 ज्यादा सीटें आई हैं. एनडीए के साथी जेडीयू को 28 सीटों का झटका मिलने के बाद बीजेपी का ये प्रदर्शन खास मायने रखता है. वरना जेडीयू जैसा हाल होने पर सत्ता की चाबी एनडीए के हाथ से निकल सकती थी. स्पष्ट है कि बीजेपी के समर्थकों ने एकजुट होकर मतदान किया. कोरोना काल में केन्द्र सरकार के फैसलों से बिहार की जनता में रोष होने की बात निराधार साबित हुई. जनता को उम्मीद है कि बीजेपी सत्ता में होगी तो उनका भला होगा.
ऐसे में कायदे से बिहार में मुख्यमंत्री की बागडोर बीजेपी को ही दी जानी चाहिए. हालांकि बीजेपी फिलहाल ऐसी मांग करती नजर नहीं आ रही. और कभी नैतिकता की बात करने वाले नीतीश का सियासी इतिहास उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करेगा ऐसा मुमकिन नहीं दिखता. इसके अलावा कोई शक नहीं, एक बार और मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलने के बाद नीतीश कुमार आखिरी चुनाव लड़ने का अपना ऐलान भी भूल जाएंगे.
उम्मीद है बिहार का अगला मुख्यमंत्री जो भी हो, वो प्रदेश को आगे ले जाने की जमीन तैयार करे. विकास का स्वाद चखाकर जनता को तरसाना, रिझाना बंद करे. जंगलराज का खौफ दिखाकर अपनी जिम्मेदारियों से बचना बंद करे. जनता के पास विकल्प की कमी है, लेकिन हमेशा ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी ऐसा मानकर बैठना सियासी पार्टियों, खासकर नीतीश कुमार, के लिए बड़ी भूल साबित होगी.