कोच्चि स्थित क्रिश्चियन ग्रुप चर्च ऑक्जिलरी फॉर सोशल एक्शन (CASA) ने ईसाइयों से हलाल मीट ना खरीदने का आग्रह किया है
केरल में निकाय चुनाव का शोर शांत भी नहीं हुआ कि कोच्चि में क्रिश्चियनों ने क्रिसमस से पहले हलाल मीट के बहिष्कार का आह्वान किया है। वहीं मुस्लिम संगठन की आशंका है कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है।
कोच्चि में कुछ क्रिश्चियन्स ग्रुप्स (Christian Groups) ने हलाल मीट (Halal Meat) को लेकर बहिष्कार की अपील की है, कोच्चि स्थित क्रिश्चियन ग्रुप चर्च ऑक्जिलरी फॉर सोशल एक्शन (CASA) ने ईसाइयों से आग्रह किया है कि वे अब हलाल मीट ना खरीदें। इस मामले पर मुस्लिम संगठन आईयूएमएल (IUML) ने कहा है कि क्रिसमस से पहले यह बेमतलब का विवाद खड़ा किया जा रहा है, जिसके तहत राज्य में मुस्लिम मीट की दुकानों का बहिष्कार करने के लिए एक कदम उठाया जा रहा है।
क्या है हलाल और झटका मीट में मूल अंतर
हलाल मीट के लिए जानवर की गर्दन को एक तेज धार वाले चाकू से रेता जाता है। सांस वाली नस कटने के कुछ ही देर बाद जानवर की जान चली जाती है। मुस्लिम मान्यता के मुताबिक हलाल होने वाले जानवर के सामने दूसरा जानवर नहीं ले जाना चाहिए। एक जानवर हलाल करने के बाद ही वहां दूसरा ले जाना चाहिए।
झटका का नाम बिजली के झटके से आया है। इसमें जानवर को काटने से पहले इलेक्ट्रिक शॉक देकर या गर्दन की साँस नली पर झटका देकर उसके दिमाग को सुन्न कर दिया जाता है ताकि वो ज्यादा संघर्ष न करे। उसी अचेत अवस्था में उस पर झटके से धारदार हथियार मारकर सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है।
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हिन्दुओं ने किया हलाल मीट के बहिष्कार का समर्थन
हिंदू समूहों ने CASA द्वारा हलाल मीट के बहिष्कार के आह्वान के लिए अपना समर्थन दिया। हिन्दुओं के अनुसार वे राज्य में हलाल मांस बेचने के लिए मजबूर हैं। धार्मिक कारणों से मुसलमान सिर्फ हलाल मीट खाते हैं जबकि हिन्दू झटका मीट ही खाते हैं। दरअसल ईसाई इस मामले में सेलेक्टिव नहीं होते हैं।
इस विवाद पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं। हिंदू समूहों का दावा है कि ईसाई और हिंदू दोनों को हलाल मांस बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। वहीं ऐसे कई लोग हैं जिनका कहना है कि खाने को इस तरीके से विभाजित नहीं किया जाना चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि 2011 जनगणना के अनुसार केरल में हिन्दुओं का प्रतिशत करीब ५५ प्रतिशत था, परन्तु पिछले कुछ सालों में केरल में हुए धर्मान्तरण के कारण इस धार्मिक डेमोग्राफी में काफी बदलाव हुआ है।
गौरतलब है कि केरल में हलाल विवाद क्रिसमस समारोह से पहले शुरू हुआ है, राज्य में क्रिसमस को खासी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। CASA ने ईसाइयों से अपील की है कि हलाल मीट को अब उनकी टेबल पर नहीं लाया जाना चाहिए। केरल में हलाल पे बबाल फ़िलहाल शांत होता नहीं दिख रहा है।