Ultapani Mainpat
छत्तीसगढ़ में भी एक शिमला है
छत्तीसगढ़ के मैनपाट की वादियां शिमला का अहसास दिलाती हैं, खासकर सावन और सर्दियों के मौसम में। छत्तीसगढ़ में विंध्य पर्वत माला में समुद्र तल से करीब 3500 साढ़े तीन हजार फ़ीट की ऊंचाई में स्थित है मैनपाट। प्राकृतिक बनावट के कारण इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है, मैनपाट की खूबसूरती देखनी हो तो ठण्ड या बारिश के समय में जाये। गर्मियों के मौसम यहाँ का तापमान काफी काम होता है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
अंबिकापुर से दरिमा होते हुए मैनपाट जाने का रास्ता है। मार्ग में जैसे-जैसे चढ़ाई ऊपर होती जाती है, सड़क के दोनों ओर साल के घने जंगल अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
बादलों से घिरे मैनपाट के दर्शनीय स्थल हैं दलदली, टाइगर प्वाइंट और मेहता पॉइंट जहां पहुंचकर लोग बादलों को नजदीक से देखने का नया अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। पर्यटक यहां की अनुपम छटाओं को कैमरे में कैदकर सोशल मीडिया पर भी पोस्ट कर रहे हैं।
प्रमुख अन्य दर्शनीय स्थलों में यहाँ – तिब्बियत मॉनेस्ट्री, उल्टा पानी, ठिनठिनी पत्थर आदि है।
इस इलाके को कहते हैं मिनी तिब्बत
साल 1962 में तिब्बत पर चीनी कब्जे और वहां के धर्मगुरू दलाई लामा सहित लाखों तिब्बतियों के निर्वासन के बाद भारत सरकार ने उन्हें अपने यहां शरण दी थी। इसी दौरान तिब्बत के वातावण से मिलते-जुलते मैनपाट में एक तिब्बती कैंप बसाया गया था, जहां तीन पीढ़ियों से तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं।
वहां के मठ-मंदिर, लोग, खान-पान, संस्कृति सब कुछ तिब्बत के जैसी है, इसी वादी में रंग-बिरंगे तोरण, बोद्ध मंदिर, बौद्ध भिच्छुओं के शांत सौम्य चेहरों के साथ कालीन बुनते तिब्बतियों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि हम नाथूला दर्रे को पार कर तिब्बत के किसी गांव में पहुंच गए हैं। इसलिए इसे मिनी तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है। यहां आने के बाद सैलानियों को बुद्ध की शरण में आने का भी अहसास होता है। छोटे-छोटे साफ-सुथरे मकान और चारों ओर हरियाली। रंग-बिरंगे छोटे बड़े झंडे से सुसज्जिात परिसर, हाथ में माला और चेहरे पर मुस्कान यह पहचान है मैनपाट के तिब्बती और उनके कैंपों की।
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दलाई लामा भी आ चुके हैं मैनपाट
तिब्बतियों की आस्था अपने धर्म गुरु के प्रति अटूट है। यहाँ तिब्बती धर्म गुरु दलाईलामा दो बार आ चुके है। मैनपाट में तिब्बती शरणार्थियों के लिए उपलब्ध कराई गई सुविधाओं को लेकर हमेशा से ही धर्मगुरु दलाई लामा ने स्थानीय प्रशासन की भी सराहना की है। मैनपाट के तिब्बती शरणार्थी स्थानीय मूल निवासियों से पूरी तरह से घुल-मिल गए हैं। हर एक परिवार के सुख-दुख में शामिल होने की उनकी परंपरा ने ही उन्हें अपना बना लिया है।
रहस्यमयी जमीन दलदली / जलजली
छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में ऐसी जमीन है जो बिना भूकंप के हिलती है। जमीन ऐसी है कि लोग उछलते हैं तो स्पंज की तरह हिलती है। कुदरत के इस खेल को देखने पहुंचे सैलानी कुछ देर तक बच्चों की तरह उछलते रहते हैं।
भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार यह एक टेक्निकल टर्म ‘लिक्विफैक्शन’ का एक उदाहरण है। लिक्विफैक्शन इंगित करता है कि यहां भूकंप जैसा प्रभाव भी आ सकता है।
उल्टा पानी (Ultapani Mainpat)
पृथ्वी में ऐसी भी जगह है जहां गुरुत्वाकर्षण बल काम नहीं करता, उनमे से एक जगह है मैनपाट का उल्टा पानी। गुरुत्वाकर्षण से ज्यादा प्रभावी चुम्बकीय बल होने से न्यूट्रल गाड़ी 110 मीटर उलटी दिशा में चली जाती है। यहां पानी का बहाव नीचे की तरफ न होकर ऊपर यानी ऊंचाई की तरफ है।
मैनपाट की इस जगह में गुरुत्वाकर्षण बल से ज्यादा प्रभावी मैग्नेटिक फील्ड है, जो पानी या वाहन को ऊपर की तरफ खींचता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, देशभर में ऐसी 5 और दुनिया में 64 जगह हैं।
मैनपाट के पर्यटन अधिकारी बताते हैं, ‘‘कुछ साल पहले तक लोग इस जगह को भूतिया मानते थे।“ पर्यटन विभाग के प्रचार के बाद लोगों में जागरुकता बढ़ी। इसके बाद पर्यटक घूमने पहुंचते हैं।
ठिनठिनी पत्थर :-
मैनपाट के समीपस्थ रेलवे स्टेशन अंबिकापुर से लगभग 12 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है ठिनठिनी पत्थर। यहाँ बड़े बड़े पत्थरों का समूह है, इन पत्थरों को किसी ठोस वस्तु से ठोकने से किसी धातु की आवाज़ आती है। इन पत्थरो मे बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज मे कोइ अंतर नही पडता है। एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है। इस विलक्षणता के कारण इन पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।