Singhanpur Caves
एक धरोहर, प्राचीन शैल चित्रों का संग्रह
पुरातत्व की दृष्टि से रायगढ़ जिला काफी समृद्ध है। सिंघनपुर गुफा रायगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर पश्चिम की ओर आने सिंघनपुर की पहाड़ी अपने प्राचीन शैल चित्रों के लिए मशहूर है। इन गुफाओं में विश्व की प्राचीनतम मानव शैलाश्रय स्थित है।
इसकी खोज सन 1910 में एक ब्रिटिश नागरिक एंडरसन द्वारा की गई थी। इंडिया पेंटिग्स 1918 में तथा इन्साइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के 13वें अंक में रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के शैलचित्रों का प्रकाशन पहली बार हुआ था। उसके बाद स्व श्री अमरनाथ दत्त ने 1923 से 1927 के मध्य रायगढ़ तथा समीपस्थ क्षेत्रों में शैल चित्रो का सर्वेक्षण किया।

डॉ एन. घोष, डी. एच. गार्डन द्वारा इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। तत्पश्चात स्व. पंडित श्री लोचनप्रसाद पांडेय द्वारा भी इन शैलचित्रो के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करायी गई। सिंघनपुर का गुफा लगभग ईसापूर्व 30 हजार साल पुराना है।
सिंघनपुर की दुर्गम गुफाओं का रहस्य
कहा जाता है कुछ वर्ष पूर्व तक स्थानीय लोग सिंघनपुर गुफा के आसपास तंत्र मंत्र की पूजा किया करते थे जो अब नहीं करते हैं, जिसका जिक्र भी अब वो नहीं किया करते हैं।
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रायगढ़ के राजा लोकेश बहादुर सिंह, ब्रिटिश अफसर राबर्टसन और भी कुछ लोगों की रहस्यमय मौत ने इस गुफा से जुड़ी धारणा को और बढ़ा दिया। कहा जाता है इस गुफा में कभी संतों का अखाड़ा लगता था। गुप्त सिद्धियां पाने के उद्देश्य से कई संत यहां तांत्रिक क्रियाएं व गुप्त साधनाएं किया करते थे।
क्या कोई खजाना भी है यहाँ
यह भी अवधारणा है लोगों में कि इस गुफा में अंग्रेजों के जमाने का खजाना गड़ा है। जिसकी खोज में कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं। किवदंतियों के अनुसार जो भी इस गुफा में खजाना हासिल करने के उद्देश्य से दाखिल होता है, वो जिंदा वापस नहीं लौटता।

सिंघनपुर गुफा : विश्व की प्राचीनतम धरोहरों में से एक (Singhanpur Caves)
यह विश्व की प्राचीनतम धरोहरों में से एक है। यहाँ छोटी-बड़ी ग्यारह गुफाएं गुफाये हैं जो आकार में लगभग 300 मीटर लम्बी और 7 मीटर ऊँची है। गुफा की दीवारों में पंक्तिबद्ध नृतकों की टोली , प्राचीनकाल में शिकार का दृश्य, सीढ़ीनुमा पुरुष, मानव आकृतियां, नृत्यकला इत्यादि है।
इसके अलावा विविध पशु आकृतियाँ, वन भैंसा, बंदर, छिपकली तथा अन्य चित्रों के अंकन में मानवों की कला-संस्कृति आज भी जीवित है।

चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों के अध्ययन से वहाँ रहने वाले निवासियों के उस काल के जीवन और पर्यावरण तथा प्रकृति की जानकारी प्राप्त होती है। इन गुफाओं से छत्तीसगढ़ में प्राचीन काल मानव निवास के प्रमाण भी मिलते हैं जो उस काल में प्राचीन मानवों द्वारा उकेरे गए इन शैल चित्रों के आधार पर तत्कालीन रहन सहन, पशु, संस्कृति प्राकृतिक अवस्था का भी बोध करता है।
कुछ शैल चित्र जिराफ, शुतुरमुर्ग और डायनासोर की आकृति में भी उकेरा गया है, जो करोडो वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में इन जीवों की उपस्थिति को भी दर्शाता है।
इस शैलाश्रय में पहले 23 कलाकृतियां देखी गयी थी, जबकि अभी सिर्फ 13 कलाकृतियां ही बची हुई हैं। अधिक समय बीत जाने और प्राकृतिक दुष्प्रभावों के कारण आज ये शैल चित्र धूमिल हो गए है।
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्राकृतिक धरोहर के रूप में ये गुफा सरंक्षित है।
100%ाGood information has been gathered. Historical Heritage of World.
Well-done
Very good .
Bohot accha likha bohot janneko mila jo malum nahi tha.