दाम्पत्य अधिकारों का प्रतिस्थापन धारा 9 (Section 9) हिंदू विवाह अधिनियम 1855
पति या पत्नी एक दूसरे के साहचर्य से, बिना युक्तियुक्त कारण के अलग रह रहे हो तो दाम्पत्य अधिकारों के प्रतिस्थापन के लिए व्यथित पक्षकार न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। इस अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके अनुसार पति या पत्नी को द्वितीय विवाह करने से रोका जा सके।
एक मामले में सूरज नाम का लड़का अपनी 2 साल की शादी के बाद पत्नी रेखा से तलाक चाहता है, दोनों के 6 माह का एक बच्चा भी है। सूरज ने तलाक के लिए आवेदन दे दिया, लेकिन पत्नी रेखा चाहती है कि बच्चे के बड़े होने तक उसके पिता से दूर नहीं रखा जाए। साथ ही साथ रेखा अपनी शादी को बचाए रखना भी चाहती है। वह सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि अपने बच्चे को पिता का पूरा प्यार सम्मान और उसका पूरा अधिकार दिलाना चाहती है। वह चाहती है कि बच्चे अपने पिता से भावनात्मक रूप से भी जुड़े रहे।
हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह अधिकारों की बहाली का उल्लेख धारा 9 (Section 9) में किया गया है

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली बिल्कुल संभव है। इन दिनों समाचार पत्रों में तलाक के बारे में काफी कुछ पढ़ने को मिल रहा है। कई मशहूर हस्तियां वर्षों के वैवाहिक जीवन को सुखी पूर्वक व्यतीत करने के बावजूद तलाक ले लेते हैं जबकि विवाह को एक संस्कार माना गया है। विवाह दो पक्षों का मेल है लेकिन विवाह में क्या-क्या वैवाहिक अधिकार है, इसकी कभी बात ही नहीं की जाती है। हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह अधिकारों की बहाली का उल्लेख धारा 9 में किया गया है। यह अधिकार विशुद्ध रूप से पति और पत्नी के बीच रहता है। वैवाहिक अधिकारों की बहाली को इस तरह भी समझा जा सकता है कि पति या पत्नी दोनों बिना कारण के एक दूसरे से अलग रहते हैं या दोनों में से कोई एक दूसरे को छोड़कर चला जाता है तो छोड़कर जाने वाले के विरुद्ध वैवाहिक संबंधों की वापसी के लिए मुकदमा दायर किया जा सकता है। इस मुकदमे में भी भरण पोषण मांगने का अधिकार रहता है, यह कानूनी अधिकार है और अदालत इसमें डिक्री (आधिकारिक आदेश) दे सकती है। वैवाहिक संबंधों की बहाली में केवल भौतिक जरूरतों की पूर्ति नहीं है, इसमें कई अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी हैं। पति और पत्नी के बीच कुछ अधिकार और कर्तव्य होते हैं, जो विवाह से ही पूरे होते हैं, जो वैवाहिक अधिकार के अंतर्गत आते हैं। वैवाहिक अधिकार की बहाली को एक तरह से वैवाहिक मामलों का उपचार भी कह सकते हैं। हालाँकि यह साथ में रहने और भावनात्मक लगाव पर ही आधारित है।
जस्टिस सब्यसाची मुखर्जी ने यह व्यवस्था दी कि हिंदू विवाह अधिनियम की Section 9 किसी भी तरह से अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं है
अदालत में वैवाहिक अधिकार की बहाली के लिए कुछ बातों की अनिवार्यता होती है – पहला पति या पत्नी किसी एक का अलग रहना, और दूसरा अलग रहने का कोई ठोस कारण न होना। सुप्रीम कोर्ट ने सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (8 Aug 1984) 1984 AIR 1562,1985 SCR(1) 303 और ऐसे में निचली कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में डिक्री दी, लेकिन पति उसे अमल में नहीं लाया। ऐसे में धारा 9 की संवैधानिक वैधता पर प्रश्नचिन्ह लग गया, यह भी कहा जाने लगा कि अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 21 का उल्लंघन तो नहीं है। अंततः धारा 9 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने इस डिक्री को लागू कराया। जस्टिस सब्यसाची मुखर्जी ने यह व्यवस्था दी कि हिंदू विवाह अधिनियम कि धारा किसी भी तरह से अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं है। यह सामाजिक पक्ष को हल कर रहा है, जिससे विवाह को टूटने से रोका जा सके। धारा 9 का सामाजिक और कानूनी पक्ष यह भी है कि किसी भी तरह से दोनों पक्षों को अलग होने से रोका जा सके। विवाह में प्रेम और विश्वास आपसी सम्बन्ध का एक अहम पक्ष है और यह धारा उसे परिपूर्ण करने में पूरी मदद करती है।