वैशाली की नगरवधू आम्रपाली
बिहार का ऐतिहासिक पर्यटन स्थल : वैशाली
वैशाली बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह बिहार के वैशाली जिला के अंतर्गत आने वाला एक खास स्थान है। यह बिहार प्रांत के वैशाली जिला में स्थित एक गांव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गांव मुजफ्फरपुर से अलग होकर 12 अक्टूबर 1972 को वैशाली जिला बनने के बाद इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। यह पटना से लगभग 33 किलोमीटर की दूरी पर है। वज्जिका यहां की मुख्य भाषा है।
मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी और इस शहर को समृद्ध बनाने में एक बड़ी मदद की। आचार्य चतुरसेन शास्त्री रचित उपन्यास वैशाली की नगरवधू में आम्रपाली का चरित्र चित्रण और राज्य के प्रति उसके समर्पण को बहुत ही संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है। वैशाली की नगरवधू आम्रपाली के अलावा और भी ऐतिहासिक धरोहर हैं इस प्रान्त के।
वैशाली में ही विश्व का पहला गणतंत्र (Republic) लागू किया गया था। भगवान महावीर का जन्म स्थान वैशाली होने से जैन धर्म के मताबलंबियों लिए यह पवित्र नगरी है। भगवान बुध का इस स्थान पर तीन बार आगमन हुआ यह उनकी कर्मभूमि थी। महात्मा बुद्ध के समय 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था। भगवान बुद्ध ने इस जगह पर अपना काफी समय बिताया, बुद्ध ने आखिरी प्रवचन दी और यहां अपने निवार्ण की घोषणा की। अति महत्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिंदू तीर्थ एवं पाटलिपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है।
आज वैशाली पर्यटकों के लिए बहुत ही लोकप्रिय स्थान है
इस स्थान का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि महाभारत काल में राजा विशाल के शासन क्षेत्र में यह स्थान पड़ता था, जिसके कारण उनके नाम पर इसका नाम वैशाली पड़ा।
वैशाली के दर्शनीय स्थल-
अशोक स्तंभ-
सम्राट अशोक वैशाली में हुए महात्मा बुद्ध के अंतिम उपदेश की याद में नगर के समीप सिंह स्तंभ की स्थापना की। दर्शनीय मुख्य परिसर से लगभग 3 किलोमीटर दूर कोल्हुआ यानी बखरा गांव में हुई खुदाई के बाद निकले अवशेषों को पुरातत्व विभाग ने चारदीवारी बनाकर सहेज रखा है।
परिसर में प्रवेश करते ही खुदाई में मिला ईंटों से निर्मित गोलाकार स्तूप और अशोक स्तंभ दिखाई पड़ जाता है। इस स्तंभ का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है। इस स्तंभ के ऊपर 18.3 मीटर ऊंची घंटी के आकार की बनावट इसे आकर्षक बनाती है। अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग भीमसेन की लाठी कह कर पुकारते हैं।
यहीं पर एक छोटा सा कुंड है जिसे रामकुंड कहा जाता है। कुंड के एक ओर बुध का स्तूप है और दूसरी ओर कुटागारशाला है संभवत कभी अधिक सुनियो का प्रवास स्थल रहा है। बौद्ध स्तूप-भगवान बुध के परिनिर्वाण के पश्चात लिच्छवी द्वारा वैशाली में बनवाया गया अस्थि स्तूप है। यह स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यहां पर भगवान बुद्ध के राख पाए गए।
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अभिषेक पुष्करणी
बुद्ध स्तूप के समीप ही स्थित एक सरोवर है। प्राचीन वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व बनवाया गया इस पवित्र सरोवर की यह मान्यता है कि जब कोई नया शासक निर्वाचित होता था तो उनका यहीं पर अभिषेक करवाया जाता था। इसी के पवित्र जल से अभिशिक्त हो लिच्छिवियों का अराजक गन तांत्रिक संथा गार में बैठता था। राहुल सांकृत्यायन ने अपने उपन्यास “सिंहसेनापति” में इसका उल्लेख किया है।
विश्व शांति स्तूप
अभिषेक पुष्कर्णी के नजदीक जापान के निपोन्जी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांति स्तूप स्थित है। गोल घुमावदार गुंबद, अलंकृत सीढियां और उनके दोनों और स्वर्ण रंग के बड़े सिंह – जैसे की पहरेदार शांति स्तूप की रखवाली करते हुए प्रतीत होते हैं। सीढ़ियों के सामने ध्यान मग्न बुध की स्वर्ण की प्रतिमा है। शांति स्तूप के चारों और बुध की विभिन्न मुद्राओं वाली अत्यंत सुंदर मूर्तियां स्थित है।
बावन पोखर मंदिर
बावन पोखर मंदिर टैंक के पास स्थित है जिसे बिहार में पोखर कहा जाता है। यह मध्ययुगीन काल की एक पत्थर की संरचना है। मंदिर में स्थापित मूर्तियाँ काले बेसाल्ट से बनी हैं। चार सिरों वाला शिवलिंग मंदिर में स्थापित किया गया है जिसे मंदिर के परिसर में गाड़ा हुआ पाया गया था। शिव लिंग भी काले बेसाल्ट से बना है जो पल्लव वंश की वास्तुकला की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
इनके अलावा हिंदू देवताओं की कई अन्य मूर्तियों को एक साथ स्थापित और पूजा जाता है। इस मंदिर को सभी भक्तों द्वारा सुशोभित फूलों और कीमती रत्नों से सजाया गया है। बावन पोखर मंदिर के पास एक और मंदिर स्थित है। यह एक मंदिर है जो भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है।
राजा विशालगढ़
यह वास्तव में एक छोटा टीला है जिसकी परिधि 1 किलोमीटर है। इसके चारों तरफ 2 मीटर ऊंची दीवार है, जिसके चारों ओर 43 मीटर चौड़ी खाई है। यह प्राचीनतम संसद माना जाता है। इस संसद में 7,777 संघीय सदस्य इकट्ठा होकर समस्याओं को सुनते थे, इस पर बहस करते थे। यह भवन आज भी पर्यटकों को भारत के लोकतांत्रिक प्रथा की याद दिलाता है।
कुंडल ग्राम
यह जगह भगवान महावीर का जन्म स्थान है। यह जैन धर्मावलंबियों के लिए काफी पवित्र माना जाता है। वैशाली से इसकी दूरी 4 किलोमीटर है।
इतने अधिक ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे वैशाली आज भी पर्यटन की दृष्टि से बिहार में उपेक्षित ही है।
Lekh achhe hai. Shaili bhi thik hai. Article achhe lage.