शिल्पकला का एक गाँव (एकताल, रायगढ़) झारा शिल्प कला – Dhokra Art Village
रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर ओड़िशा राज्य की सीमा की ओर एक छोटा सा गांव एकताल अपनी हस्तनिर्मित धातु की शिल्पकारी के लिए मशहूर है। इस गाँव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ अनेकों राज्य और राष्ट्र स्तरीय पुरस्कार विजेता कलाकारों का घर है।
ढ़ोकरा शिल्प कला :-
एकताल की इस विशेष कला को ढ़ोकरा शिल्प कला के नाम से जाना जाता है। यहाँ के शिल्पकार आज भी मोम क्षय विधि जैसी प्राचीन कार्य पद्धति का इस्तेमाल करते हैं, जिसका प्रयोग सिंधु घाटी सभ्यता की कालावधि के दौरान भी होता था। कांस्य धातु शिल्प धातु के ढालने की प्राचीनतम ज्ञात विधियों में से एक है। ढ़ोकरा वस्तुओं और आकृतियों से मिलते-जुलते धातु से बने टुकड़े हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिले हैं, जिससे इस विश्वास को बल मिलता है कि यह शिल्प- कला संभवतः प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है।
इस पद्धति के अनुसार सबसे पहले मोम से बनी पट्टियों से चिकनी मिट्टी की बनी सिल्ली पर तरह-तरह के ढांचे बनाए जाते हैं। यह मोम की पट्टियाँ एक छोटी सी लकड़ी की मशीन की सहायता से बनाई जाती हैं, जिसमें सामान्य सी दबाव प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है। फिर यह मोम पूर्ण रूप से स्थिर होने के पश्चात उस पर चिकनी मिट्टी की और एक परत चढ़ाई जाती है, जिसे ठोस बनाने के लिए बाद में पकाया जाता है।
इन कलाकारों की अधिकतर कृतियाँ आदिवासी देवी-देवताओं और लोक-कथाओं या उनसे जुड़े पात्रों से संबंधित हुआ करती थीं। लेकिन अब धीरे-धीरे ये लोग उपयोगी वस्तुएं जैसे कि बर्तन आदि की आकृतियाँ बनाने का प्रयास भी करने लगे हैं। बाजार में बनी मांग को समझते हुए यह कलाकार इस विश्व की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार कुछ भी बना सकते है।
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झारा शिल्प कला से बने सामानों की देश भर में मांग है
यहाँ के शिल्पकार देश भर में घूम – घूम अपनी इस अनूठी कला का प्रदर्शन करते है। देश के विभिन्न भागो और अन्य राज्यों से भी इन्हे अपनी कला का प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया जाता है। जो यहाँ के शिल्पकारों के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन भी है।
रायगढ़ को छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की राजधानी भी कहा जाता है। झारा शिल्प कला से जुड़े हुए कलाकारों को शासन द्वारा प्रोत्साहित किया जाता रहा है, जिससे उन्हें इस क्षेत्र रोजगार के अच्छे अवसर मिले और उनकी आमदनी दोगुनी हो। जिसके लिए शासन द्वारा जिला मुख्यालय में में झारा शिल्प एम्पोरियम बना कर जिले भर के झारा शिल्प कलाकारों को दुकान उपलब्ध कराई गई हैं। झारा शिल्प ऐसी कला है जिसकी मूर्तियों को लेने पूरे देश से लोग अब रायगढ़ पहुंचते हैं। सरकार के सहयोग और योजनाओं को झारा शिल्प कलाकार फायदा उठा रहे हैं और इसकी तारीफ भी कर रहे हैं।
अब तक झारा शिल्प से जुड़े कलाकारों को अपने द्वारा बनाए गए मूर्तियों को बाजार तक ले जाने में काफी परेशानी होती थी। इस अदभुत कला को समय पर बाजार नहीं मिल पाता था। इस काम को करने वाले अधिकांश लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। छत्तीसगढ़ सरकार और अनुसूचित जनजाति विभाग ऐसे कलाकारों की कला को जीवंत रखने को हर संभव मदद कर रही है
छत्तीसगढ़ के प्रमुख झारा शिल्पकार
एकताल में दर्जन भर के करीब राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित ग्रामीण हैं और लगभग पैंतीस राज्य स्तरीय पुरस्कार वाले निवासी हैं।
गोविन्द राम झारा – शिल्पग्राम एकताल के निवासी गोविन्द राम झारा शिल्पकला के पर्याय मने जाते है। झारा शिल्पकला को देश विदेश पहुँचाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे एकताल ग्राम के शिल्प को चरम उत्कर्ष पर संस्थापित करने वाले प्रथम पुरोधा भी थे।
शंकर लाल झारा को धातु की असाधारण कुर्सी बनाने में महारथ हासिल हैं
इन्हे भी राष्ट्रीय पुरस्कार पंखों वाले घोड़े पर मिला था।
श्रीमती बुधियारिन देवी –
बुधियारिन देवी झारा शिल्प कला में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता है। इन्हें ये अवार्ड ‘चंद्री माता का रथ’ बनाकर शोकेस करने पर हस्त शिल्प विकास बोर्ड द्वारा मिला था। अपनी कला का प्रदर्शन इन्होने सूरजकुंड, शिमला, बंगलोर के अलावा और भी कई जगहों पर क्राफ्ट मेला में किया है।
एकताल गांव के अधिकतर निवासी झारा (गोंड आदिवासी समुदाय की उपजाति) जनजाति के हैं। भले ही यहाँ के लोगों को देश भर में सम्मान मिला हो, कइयों ने तो विदेशों में भी अपनी कला को दिखाया है पर इन लोगों का रहन सहन बिलकुल सामान्य है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने यहाँ के बने क्राफ्ट को बेचने के लिए एक समिति का गठन किया है – झिटकू मिटकी वन हस्त कला समिति। सिंधु घाटी के समय से चली आ रही यह शिल्प कला कहीं लुप्त न हो जाये, इन कलाकारों से बने सामानों को खरीदें जरूर।