Stambheshwar Mahadev Mandir
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर: कभी गायब तो कभी दिखने वाला मंदिर
भारत का रहस्यमय स्तंभेश्वर मंदिर जो कभी दिखता है तो कभी गायब हो जाता है। भारत की प्राचीनतम मंदिर विश्व के कोने-कोने से आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा है। उनकी बनावट, विशेषता, महत्व और इतिहास आदि जानने के लिए पर्यटक बार-बार भारत की ओर रुख करते हैं। इनमें से कुछ मंदिर तो ऐसे हैं जो हजारों साल पुराने हैं और उनसे जुड़ी कुछ रहस्यमयी ऐसी घटनाएं हैं जिनको जानना पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है। ऐसा ही एक मंदिर है ‘स्तंभेश्वर महादेव मंदिर’ इस मंदिर की यह खासियत है कि यह पल भर में ओझल हो जाता है और फिर थोड़ी देर बाद अपने उसी स्थान पर वापस आ जाता है।
गुजरात के कावी गांव में स्थित है यह मंदिर
स्तंभेश्वर मंदिर गुजरात के भरूच जिले के जंबूसर तहसील के अंतर्गत कावी गांव में स्थित है, जो अरब सागर के कैम्बे तट पर स्थित है। यह गुजरात के वडोदरा शहर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
समुद्र देवता करते हैं महादेव का जलाभिषेक
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र देवता सुबह और शाम में प्रतिदिन भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं, यह सदियों से हो रहा है। इस तीर्थ स्थान का उल्लेख “श्री शिव पुराण” में रुद्र संहिता भाग -दो और अध्याय ग्यारह में भी किया गया है। आज से 150 वर्ष पूर्व इस मंदिर की खोज हुई थी। मंदिर में विराजमान शिवलिंग 4 फुट ऊंचा और 2 फुट व्यास का है। मंदिर को देखते समय उसके पीछे अरब सागर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
मंदिर के निर्माण से जुड़ी कथा
स्कंद पुराण के अनुसार राक्षस ताड़कासुर ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से यह वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु शिवपुत्र के अलावा कोई ना कर सके। इस आशीर्वाद की प्राप्ति के बाद वह पूरे ब्रह्मांड में उत्पात मचाने लगा। उस समय भगवान शिव के तेज से उत्पन्न पुत्र कार्तिकेय का पालन – पोषण कृतिकाओं द्वारा अपने पास रख कर किया जा रहा था। ताड़कासुर के उत्पात से लोगों को बचाने के लिए बालक रूप कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया, परंतु जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि ताड़कासुर भगवान शिव का भक्त था तो कार्तिकेय ने सभी देवताओं के मार्गदर्शन से उन्हें महिसागर संगम तीर्थ पर विश्व नंदन स्तंभ की स्थापना की। यही स्तंभ मंदिर आज स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है।
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क्यों गायब होता है यह मंदिर
समुद्र किनारे होने के कारण जब भी ज्वार आता है यह पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है और ओझल हो जाता है। पुनः ज्वार समाप्त होने पर उसी स्थान पर मंदिर दिखाई पड़ता है। स्तंभेश्वर मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं को विशेष रूप से पर्चे दिए जाते हैं जिसमें ज्वार आने का समय लिखा होता है, ताकि उन्हें किसी तरह की अनावश्यक परेशानी उठानी ना पड़े। ज्वार के समय चारों ओर पानी ही पानी होने के कारण मंदिर में विराजमान शिवलिंग के दर्शन नहीं किए जा सकते। ज्वार समाप्त होने पर ही दर्शन संभव हो पाता है। इसीलिए भक्तजन दूर से ही उस समय देखते हैं।
महाशिवरात्रि और अमावस्या को इस मंदिर की छटा देखते ही बनती है। दूर-दराज से श्रद्धालु इस दिन विशेष रूप से जलाभिषेक देखने के लिए आते हैं। इस दिन मंदिर के गायब होने और दिखने की प्रक्रिया स्पष्ट दिखाई देती है। इस मंदिर को गायब मंदिर और गुप्त महादेव मंदिर भी कहा जाता है। स्तंभेश्वर मंदिर के गायब होने की घटना साल में कई बार देखने को मिलती है। समुद्र के बीच स्थित होने के कारण यह मंदिर लोगों के लिए खास कौतूहल का विषय है। इस मंदिर के दर्शन केवल कम ज्वार के समय ही किया जा सकता है।