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Rani Sarandha ki Kahani

रानी सारन्धा की शौर्य गाथा

हमारा देश भारत वीरता के मामले में सदैव अग्रणी रहा है। यह धरती वीरों और वीरांगनाओं की गाथा से भरी है। मध्यकाल और अंग्रेज काल में कई राजाओं और रानियों को स्वाभिमान के लिए अपना बलिदान देना पड़ा था। ऐसी परिस्थिति भी आई कि कई रानियों को देश की बागडोर संभालने की जरूरत पड़ी और उन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता और अपने स्वाभिमान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे डाली।

एक वीरांगना थी रानी सारन्धा

उन्हीं में से एक वीरांगना थी रानी सारन्धा। जिनके पास अतुलनीय साहस था। भारत की वीरांगनाओं में रानी सारन्धा का नाम बड़ा ही सम्मान से लिया जाता है। महारानी सारन्धा में बचपन से देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। यह स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती थी। मुस्लिम सत्ता के अधीन रहना इन्हें हरगिज मंजूर न था।

मुस्लिम शासकों का हिंदुओं के प्रति बड़ा ही कट्टर व्यवहार हुआ करता था। उनकी कोई नीति नहीं होती, जो मर्जी होती वैसा नियम बना देते। अपना साम्राज्य विस्तार करना, हिंदुओं की धरोहर को नष्ट करना, हिंदू बच्चों को पढ़ाई से विमुख करना, हिंदू धर्म का क्षय और हिंदू महिलाओं से अपने रनिवास की शोभा बढ़ाना इनका मुख्य उद्देश्य होता था। इसलिए जो लोग देश की स्वतंत्रता, देश के धर्म और देश की संस्कृति को मिटाकर यहां किसी अन्य धर्म -शासन की स्थापना करने के लिए संघर्षरत थे, सारन्धा जन्मजात उनसे शत्रुता मान कर उत्पन्न हुई थी।

युद्ध से भाग कर आने पर अपने भाई अनिरुद्धसिंह को धिक्कारा

जब सारन्धा किशोरावस्था में थी तभी उसका भाई अनिरुद्धसिंह यवनों से हो रहे युद्ध से पीठ दिखा कर भाग आया था। इस बात पर सारन्धा ने भाई को धिक्कारा “युद्ध भूमि से पीठ दिखाकर भागना वीरों के लिए शर्म की बात है। तुम्हें बुंदेलों की आन और शान का जरा भी ख्याल ना रहा”। जिससे उसका भाई पुनः युद्ध भूमि में गया और अपनी जीत हासिल की। इसके उपरांत ओरछा के राजा चंपत राय से हुआ विवाह सारन्धा का और समय-समय पर पति का मार्गदर्शक बनी।

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सारन्धा की शादी बुन्देलखण्ड के ओरछा के राजा चंपत राय से

चंपत राय वीर, स्वतंत्रता प्रेमी और देशभक्त राजा थे। रानी सारन्धा को अपने पति की वीरता और स्वतंत्रता प्रेम की भावना पर बड़ा गर्व होता था। सारा बुंदेला क्षेत्र उनका सम्मान करता था। परिस्थिति परिवर्तित हुई और राजा चंपत राय शाहजहां से मित्रता कर उसके द्वारा दिए गए महल में ओरछा छोड़कर रहने लगे। यह बात रानी को पसंद नहीं थी, सभी सुख-सुविधाओं के बावजूद उन्हें यह पराधीनता मंजूर नहीं था। वह उदास रहने लगी पति के पूछने पर उन्होंने यह कहा कि लाख सुविधाओं के बावजूद वह यहां एक राजा की पत्नी नहीं बल्कि एक जागीरदार की चेरी हैं। इस प्रकार रानी ने पति को स्पष्ट शब्दों में हकीकत समझा दिया। उन्होंने सही मार्गदर्शन दिया, मन में देश प्रेम और स्वतंत्र की भावना को जागृत किया और वापस ओरछा लौट आई।

मुगलों से युद्ध में रानी सारन्धा की अहम भूमिका –

मुराद और मुहीउद्दीन के सहायता मांगने पर दारा शिकोह के विरुद्ध युद्ध में रानी सारन्धा ने रणभूमि में स्वयं जाकर राजा चंपत राय का साथ दिया और जीत हासिल की। इस जीत में रानी की प्रमुख भूमिका थी। औरंगजेब रानी सारन्धा से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था।

दारा शिकोह से जीत हासिल होने पर औरंगजेब राजा चंपत राय को कुछ जागीर देकर अपने अधीन करना चाहता था, परंतु रानी सारन्धा ने उसे ठुकरा दिया। दूसरी बात यह कि औरंगजेब के खास आदमी वली बहादुर खां से युद्ध में रानी ने घोड़ा जीता था, रानी के पुत्र से वली बहादुर खां ने वही घोड़ा छीन लिया। इस बात पर क्रोधित हो रानी ने औरंगजेब के दरबार में उपस्थित वली बहादुर खां को वहां जाकर युद्ध के लिए ललकारा। वह अपनी आन की खातिर कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार थी। इस बात से औरंगजेब को अपना अपमान महसूस हुआ।

रानी सारन्धा से इन्हीं बातों का बदला लेना चाहता था औरंगजेब

औरंगजेब ने चंपत राय के कई दरबारी और उसके साथी शुभकरण को अपने साथ मिला लिया। सूबेदार शुभकरण को चंपत राय के विरुद्ध युद्ध अभियान पर भेजा। इस युद्ध में चंपत राय की जीत हुई, लेकिन उन्हें महल छोड़कर बुंदेलखंड के जंगलों में झुपना पड़ा। मुगल सेना ने ओरछा में उनके किले को घेर रखा था। 3 वर्षों तक महाराज और रानी बुंदेलखंड के जंगलों में छुपे रहे। जब औरंगजेब उन्हें पकड़ने में सक्षम नहीं हुआ तो उसने एक योजना के तहत किले पर तैनात सिपाहियों को हटा लिया ताकि राजा आश्वस्त हो जाए कि खतरा टल गया है और पुनः अपने किले में वापस लौट आए। औरंगजेब की इस योजना में राजा फस गए जब वापस किले में आए तो मुगल सेना ने फिर से घेर लिया।

इसी क्रम में राजा बीमार हो गए, खाद्य सामग्री समाप्त होने लगी। किले के अंदर फंसे करीब 20000 लोगों के जीवन रक्षा की चिंता राजा और रानी को सताने लगी। ऐसी परिस्थिति में किले में फंसे लोगों को छोड़कर राजा रानी का वहां से भागना उचित नहीं था। इसीलिए रानी ने अपने पुत्र छत्रसाल से मिलकर एक योजना बनाई और औरंगजेब के पास एक संधि पत्र भेजा जिसमें उन्होंने किले में फंसे लोगों के साथ दया भाव की याचना की।

औरंगजेब की धूर्तता से छत्रसाल बना बंधक

औरंगजेब ने छत्रसाल को बंधक बना लिया और इंतजार करने लगा। इसी बीच रानी राजा को बेहोशी की अवस्था में ही ले कर कुछ सैनिकों के साथ किले से निकल गई। मुगल सैनिकों को इस बात की भनक लग गई उसने उनका पीछा किया। 10 कोस पीछा करने के बाद मुगल सैनिक उनके करीब पहुंच गए, एक-एक करके इनके सभी साथी वीरगति को प्राप्त हो गये, राजा को अचानक से होश आया, परंतु उनकी शक्ति इतनी क्षीण हो चुकी थी कि वह युद्ध करने में असमर्थ थे।

उन्होंने रानी से कहा “मैं शत्रु की बेड़ियाँ पहनने के लिए जीवित नहीं रह सकता। क्या तुम मुझे शत्रु की कैद में देखना पसंद करोगी, शत्रु की कैद में जाने से अच्छा है तुम अपने हाथों से मेरे सीने में खंजर घोंप दो”। एक पत्नी के लिए कितनी कठिन परीक्षा की घड़ी थी, जो प्राणों से भी प्यारा था उसका प्राण अपने हाथों से कैसे ले सकती थी। इसी बीच सिपाही राजा के करीब पहुंच गए और राजा की ओर लपके, तभी अचानक रानी सारन्धा ने बिजली की भांति झटके से खंजर खींचकर राजा के सीने पर प्रहार कर दिया। इस दृश्य को देखकर सैनिक दंग रह गए। इसके बाद रानी ने अपने सीने में भी खंजर मार ली और सदा के लिए चिर निद्रा में सो गई।

यह है हमारे देश का इतिहास

यहां की वीरांगनाओं की कहानी अद्भुत है। जिन्होंने अपना त्याग और बलिदान देकर स्वतंत्रता प्राप्ति में सहयोग दिया। हर कदम पर पुरुषों का साथ दिया है कभी मां, कभी पत्नी, कभी बहन, तो कभी बेटी बनकर सही मार्गदर्शक बनी, तो कभी समर भूमि में चंडिका रूप में भी अवतरित हुई।

By कुनमुन सिन्हा

शुरू से ही लेखन का शौक रखने वाली कुनमुन सिन्हा एक हाउस वाइफ हैं।

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