ये कहानी एक छाते की है। जिसे मैंने खरीदा था, मलेशिया के कुआलालंपुर में। मेरे जीवन का पहला इंटरनेशनल ट्रिप। मेरे हसबैंड विवेक के साथ। हम अप्रैल के महीने के दूसरे हफ्ते में मलेशिया में थे। उस वक्त वहाँ बारिश हो रही थी। हमारा फ्लाइट कोलकाता से कुआलालंपुर का था। हम कुआलालंपुर से जेंटिंग हाइलैंड्स गए, वहाँ हमारा एक रात का स्टे था, फिर हम वहाँ से कुआलालंपुर आए और वहाँ से फ्लाइट लेकर हम कोटा किनाबालू गए जहाँ हमने 3 दिन बिताए। बहुत सी इंटरेस्टिंग घटनाएँ वहाँ भी हुईं। पर मैं अभी उन सबका ज़िक्र नहीं करते हुए अपनी छतरी की कहानी पर आती हूँ।
पहली बारिश, पहली विदेश यात्रा और एक नया साथी
कोटा किनाबालू से हम फिर कुआलालंपुर आए। हमने एयरपोर्ट से बस ली, सिटी में आए फिर वहाँ से कैब लिया और अपने होटल पहुँचे। होटल में फ्रेश होने के बाद हम निकले ट्विन टावर्स जाने को, पर जैसे ही हम बाहर आए तो देखा कि वहाँ ज़ोरों की बारिश हो रही थी। हमने कैब बुक किया और पहुँच गए ट्विन टावर्स। वहाँ तक जाते-जाते बारिश तो कम हो गई थी, पर अभी भी हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। मेरे दिमाग में आया क्यों ना एक अम्ब्रेला ले लिया जाए, विवेक भी एग्री हो गए, हमारा प्लान था कि हम टेम्पररी वाला एक अम्ब्रेला लेंगे और इंडिया जाते वक्त उसे यहीं छोड़ देंगे।
हम ट्विन टावर्स से वॉक लेकर चाइना टाउन मार्केट पहुँच गए। हम वहाँ पैदल चल रहे थे कि तभी हमें एक लड़की के गाने की आवाज़ आई और वो भी हिंदी में । हम दोनों बड़े ही आश्चर्य से उस दिशा में बढ़ने लगे जहाँ से वो आवाज़ आ रही थी। जाकर देखा तो एक मलेशियन लड़की हिंदी गाना गा रही थी। बड़ा मज़ा आया उसको सुनने में। तभी एक बंदा आगे से आके बोला “मैम डू यू वांट अम्ब्रेला?” मैंने झट से कहा “यस”। वो मुझे एक सिंपल सा अम्ब्रेला दे के बोला take this. मैंने प्राइस पूछा तो उसने कहा 10 रिंगिट। मतलब इंडियन करंसी से 200 रुपए। मुझे थोड़ा महँगा लगा, वो अम्ब्रेला काफ़ी छोटा और कमज़ोर टाइप दिख रहा था। मुझे लगा 200 रुपए का अम्ब्रेला लेकर और उसे यहीं छोड़कर चले जाएँगे . तो कुछ मज़ा नहीं आएगा। मैंने उससे कहा “डू यू हैव लिटिल बेटर क्वालिटी अम्ब्रेला”? फिर क्या था पता चला वो बंदा बांग्लादेशी था और वो हिंदी बोलने लगा।
फिर मैं भी काफ़ी कम्फ़र्टेबल होकर उससे मोल-भाव कर एक बड़ा सा और सुंदर सा अम्ब्रेला उससे ले लिया जिसका प्राइस था 20 रिंगिट। हमारे करंसी से 400 रुपए। अम्ब्रेला ले तो लिया मैंने, पर अब मुझे ये लग रहा था कि मैं इसे लेकर इंडिया कैसे जाऊँगी, 1 मिनट के लिए ये ख्याल मेरे जहन में आया। मैंने विवेक से पूछा क्या ये छाता हम फ्लाइट में ले जा सकते हैं? विवेक ने बड़ी सहजता से कहा “हाँ-हाँ ये आराम से जाएगा क्योंकि अम्ब्रेला का एज नुकीला नहीं है।” मैं भी निश्चिंत हो गई।
छाते से जुड़ा पहला रिश्ता: चाइना टाउन की गलियों से साथ की शुरुआत
अब हम बड़े आराम से छाता लेकर घूम रहे थे। छाता इतना बड़ा था कि हम दोनों उस छाते में आराम से एडजस्ट हो जा रहे थे। रात को डिनर करके हम होटल पहुँचे और छाता हमारे साथ होटल के रूम में आ गया। नेक्स्ट डे मॉर्निंग हमारा प्लान बना बटू केव्स जाने का। हम सुबह तैयार होकर निकल ही रहे थे कि तभी विवेक ने कहा अम्ब्रेला रख लेना, बाहर तेज धूप है। हमने अम्ब्रेला लिया और चल दिए। सचमुच वहाँ बहुत तेज धूप थी और अम्ब्रेला ने हमारा काफ़ी साथ दिया। वहाँ मंदिर की उतनी ऊँची सीढ़ियाँ और वो भी इतनी तेज धूप में चढ़ना , हो नहीं पाता अगर हमारा अम्ब्रेला हमारे साथ ना होता। अब तो हम दोनों को जैसे अम्ब्रेला से प्यार ही हो गया था।
हर जगह अम्ब्रेला हमारी काफ़ी मदद कर रहा था। हम वहाँ से ट्रेन से होटल आए। मैं हर वक्त विवेक को कहती रही “ये सामान की ज़िम्मेदारी मेरी और अम्ब्रेला की ज़िम्मेदारी तेरी।” क्योंकि हमें डर लग रहा था कि हमारा अम्ब्रेला कहीं गलती से छूट ना जाए। क्योंकि अभी तक हमें अम्ब्रेला की आदत नहीं हुई थी। तो हर कुछ मिनटों के बाद ऐसा लगता था जैसे “अरे अम्ब्रेला कहाँ है”। फिर कुछ मिनटों के बाद “अरे छाता कहाँ है”। उस दिन हम शाम में फिर से चाइना टाउन मार्केट गए। काफ़ी देर घूमे, बहुत सारा शॉपिंग भी किया। हर वक्त अम्ब्रेला हमारे साथ था। हमने वहाँ से एक बड़ा ट्रॉली बैग भी खरीदा। नाइट में डिनर कर कैब लेकर हम होटल पहुँचे तो बारिश हो रही थी। फिर अम्ब्रेला ने हमारा काफ़ी साथ दिया।
छाते की चुनौती: एयरपोर्ट ड्रामा और इमोशनल टर्न
फाइनली वो दिन आ गया जब हम अम्ब्रेला को लेकर एयरपोर्ट पहुँच गए, हम टाइम से काफ़ी पहले ही एयरपोर्ट पहुँच चुके थे। अब तक अम्ब्रेला ने हमारा इतना साथ दिया था कि वो अब हम दोनों के परिवार का हिस्सा बन गया था। ऐसा लग रहा था जैसे परदेस से कोई एक दोस्त को हम अपना देश लेकर जा रहे हो। एयरपोर्ट पर हमने अपने लगेज को बैलेंस किया। 20 किलो हम कार्गो में दे सकते थे। जो कि हमने दे दिया। हमारा अम्ब्रेला इतना बड़ा था कि वो हमारे बड़े से ट्रॉली बैग में भी नहीं आया। हमने दो ट्रॉली बैग कार्गो में डाला। फिर हम अम्ब्रेला भी वहाँ दे रहे थे पर वहाँ एक सुंदर सी लड़की थी जो हमारी मदद कर रही थी वो एयर एशिया की स्टाफ थी। उसने हमें कहा “यू कैन्ट कीप योर अम्ब्रेला हेयर। यू हैव टू गो अनदर काउंटर। देयर यू कैन कीप दिस”। हमने सोचा ओके चलो हम वहाँ जाकर डाल देते हैं।
वहाँ एक काउंटर था जो “हैंडल विथ केयर” लगेज़ ले रहा था, हम वहाँ पहुँचे और वहाँ जो एयर एशिया का बंदा था उसे मैंने बोला “I want to keep my umbrella.” उसने मुझसे मेरा टिकट और लगेज़ के पेपर जो कि हमने अलरेडी कार्गो में डाल दिए थे वो माँगा। और फिर उसने कहा “You already send your luggages that is 20 kg. Now if you want to keep your umbrella then you have to pay.” मैंने पूछ दिया “How much?” उसने जब अमाउंट बोला तो मैं एक मिनट के लिए चक्कर ही खा गई। पता है कितना बोला? 300 रिंगिट! हाहाहा इंडियन करंसी से ये 6000 रुपए। 400 का छाता और 6000 उसे ले जाने का!
अब विवेक को आ गया गुस्सा। उसने पहले तो उस खड़ूस बंदे को रिक्वेस्ट किया कि भाई ले ले, छोटा ही तो है, हार्डली 600 ग्राम्स वज़न होगा मेरे छाते का। पर वो बंदा मानने को तैयार नहीं। अब विवेक ने बोला “मैं अपना सामान कार्गो से वापस लूँगा और उसमें से 1 किलो निकाल के अपने हैंडबैग में रखूँगा और फिर ये छाता जाएगा।” मैं विवेक को समझा रही थी कि ऐसा ना हो पाएगा। लगेज़ एक बार चला गया तो चला गया, उसे वापस नहीं ला सकते हैं। पर विवेक कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे।
विवेक फिर से उस सुंदर सी लड़की के पास गए और उससे जाकर कहा “I want my luggage back.” फिर उस लड़की ने विवेक को समझाया “Sir this is not possible.” कुछ देर की बातचीत में फिर जाकर विवेक को समझ आया। इन सब के क्रम में मेरी और विवेक की थोड़ी बहस भी हो गई। क्योंकि हम दोनों ही छाते को लेकर इमोशनल थे और उसे हर हाल में लेकर इंडिया आना चाहते थे।
फिर विवेक ने गुस्से में मुझसे कहा “जब ये ले जाने ही नहीं दे रहे हैं तो इसे यहीं छोड़ दो।” पर मैंने कहा “नहीं, मैं इसे सिक्योरिटी चेकिंग तक लेकर जाऊँगी। अगर वहाँ नहीं ले जाने दिया तो वहीं छोड़ दूँगी।” फिर हम अम्ब्रेला को अपने साथ लेकर चल दिए।
पहली चेकिंग हुई जहाँ मैंने अपने अम्ब्रेला को भी चेकिंग मशीन में डाल दिया और किसी ने कुछ नहीं कहा। फिर मैं अम्ब्रेला को ली और विवेक की तरफ देखा, वो भी हँसे, मानो वो खुश होकर कह रहे थे “चलो काम हो गया” और हम चल दिए। पर मुझे लग रहा था कि शायद ये सिक्योरिटी चेकिंग नहीं था। पर विवेक बोल रहे थे “हो गया, अब नहीं होगा चेकिंग।” पर ऐसा नहीं हुआ। थोड़ी ही दूरी के बाद हमें फिर से दूसरी सिक्योरिटी चेकिंग दिख गई। अब मुझे लग गया कि मैं अपने छाते से हमेशा के लिए दूर हो रही हूँ। मैंने प्यार से अपने छाते को “थैंक यू” बोला इतना साथ निभाने के लिए। और फिर भारी मन से “सॉरी” बोला कि हम तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा पा रहे हैं।
और सिक्योरिटी चेकिंग पर पहुँचकर हमने अपने सारे सामान को ट्रे में रख दिया और उस ट्रे के ऊपर मैंने अपना प्यारा अम्ब्रेला भी रख दिया। खुद सिक्योरिटी चेकिंग में चली गई। बस एक ही बात दिमाग में चल रही थी कि बाहर जाते ही सिक्योरिटी गार्ड पूछेगा “ये लगेज़ किसका है?” पर यहाँ तो आश्चर्य ही हो गया, किसी ने कुछ नहीं पूछा और हमारा छाता चेकिंग प्रोसेस को पार कर बाहर आ चुका था। अरे वाह! अब क्या था। विवेक ने मुझे देखा और कहा “जल्दी यहाँ से चलो कहीं कोई फिर से अड़ंगा न लगा दे।” हम जल्दी-जल्दी अपना सारा सामान को बैग में रखे, विवेक ने भी अपना बेल्ट लगाया, वॉलेट को अपनी पॉकेट में रखा और हम चल दिए गेट नंबर 7 पर जहाँ से हमारा फ्लाइट था कोलकाता के लिए।
घर तक का सफर और अम्ब्रेला की नई पहचान
अम्ब्रेला तो हमारे साथ था पर पता नहीं क्यों एक डर सा लग रहा था कि कहीं कोई सिक्योरिटी पर्सन या कोई क्रू मेंबर आके ये न बोल दे कि आप ये अम्ब्रेला फ्लाइट में नहीं ले जा सकते। विवेक मुझे 7 नंबर गेट पर छोड़ खुद इधर-उधर घूमने चले गए। मैं सारे सामान के साथ वहाँ बैठी थी। अम्ब्रेला मेरे बगल की सीट पर रखा था तभी एक आदमी आया और वो वहाँ बैठना चाह रहा था, तो मैंने अम्ब्रेला को वहाँ से हटाकर थोड़ी दूर पर वॉल से लगाकर खड़ा कर दिया।
मैं काफ़ी देर तक वहाँ बैठी रही। विवेक आ ही नहीं रहे थे, और वहाँ मैं कॉल भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि हमारे एक ही फोन में इंटरनेशनल सिम था और हम वाईफाई यूज़ कर रहे थे। अब वो फोन विवेक के पास था। हमारे फ्लाइट का टाइम हो चुका था, पर 7 नंबर गेट पर किसी और ही जगह का बोर्डिंग चल रहा था। अनाउंसमेंट्स तो कुछ हो रहा था पर वो मलेशियन लैंग्वेज में हो रहा था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं थोड़ी पैनिक होने लगी थी कि तभी मैंने देखा विवेक सामने से आ रहे हैं। वो आते ही बोले “हमारा फ्लाइट डिले हो गया है, तुम घबराओ नहीं और अब वो गेट नंबर 3 पर आएगा।”
हमने अपना लगेज़ उठाया और गेट नंबर 3 पर चले गए। वहाँ विवेक ने मुझे एक शॉप का नाम बोला और कहा “वहाँ खाने के कुछ अच्छे-अच्छे आइटम मिल रहे हैं, तुम जाकर अपनी पसंद का कुछ ले लो, मैं सामान के पास रहता हूँ।” मैं चली गई। वो शॉप हमारे सिटिंग एरिया से काफ़ी दूर था। वहाँ जाकर मैं कुछ-कुछ देख ही रही थी कि अचानक मुझे याद आया – अरे मेरा अम्ब्रेला! मैं अपना अम्ब्रेला गेट नंबर 7 पर ही भूल गई थी। विवेक ने भी याद नहीं दिलाया था। मैं वहाँ से दौड़ती हुई विवेक के पास आई और बोली “विवेक, हमारा अम्ब्रेला!” वो भी झट से उठे और बोले “तुम यहाँ रुको, मैं देखता हूँ, ज़रूर वहीं होगा जहाँ तुम सामान के साथ थी।” मैं वहीं बैठ के वेट कर रही थी कि तभी विवेक अम्ब्रेला लेकर आ गए। अम्ब्रेला देखकर मुझे काफ़ी खुशी हुई।
फिर मैं शॉप में गई, कुछ खाने का सामान लेकर आ गई। फिर हम काफ़ी देर गेट नंबर 3 पर बैठे रहे, फिर हमारा बोर्डिंग शुरू हुआ और हम आराम से फ्लाइट में आ गए अपने अम्ब्रेला को लेकर। अब हम और ज़्यादा कॉशियस थे अम्ब्रेला को लेकर। अब हम अम्ब्रेला को फ्लाइट में नहीं भूलना चाह रहे थे।
हम रात के 11 बजे कोलकाता लैंड कर गए और हम अपना अम्ब्रेला को सेफली अपने घर तक लेकर आ गए।
आज ये अम्ब्रेला मेरे साथ है। और जब मैं अपने सोसाइटी में अपना ये अम्ब्रेला लेकर जाती हूँ तो सब पूछते हैं – “अरे बड़ा सुंदर छाता है, कहाँ से लिया?” मेरे होठों पे एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है और साथ ही सारी स्टोरी भी याद आ जाती है…