Hinglaj Temple

🌺 हिंगलाज माता: शक्ति, श्रद्धा और सह-अस्तित्व की जीवंत प्रतिमा 🌺

बलूचिस्तान की तपती रेत और हिंगोल नदी की कलकल धारा के बीच, एक ऐसी भूमि है जो आस्था की धड़कनों से गूंजती है — यह है हिंगलाज माता का मंदिर, जिसे हिंगुला देवी और नानी पीर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिंदू और बलोच समुदायों के बीच एक आत्मिक पुल है — सहिष्णुता, सेवा और सांझी विरासत का प्रतीक।

2025 में बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, हिंगलाज माता मंदिर एक बार फिर वैश्विक और भारतीय मीडिया में चर्चा का केंद्र बन गया है। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम ने मंदिर के धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व को एक नई दिशा दी है।

📰 राजनीतिक और आध्यात्मिक चर्चा का केंद्र

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक साक्षात्कार में “जय हिंगलाज माता” का उद्घोष करते हुए बलोचिस्तान में स्थित इस शक्तिपीठ को याद किया।
उनके इस बयान ने न केवल भारत में बल्कि पाकिस्तान और बलूचिस्तान में भी धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक जुड़ाव की एक नई लहर पैदा कर दी

योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद, बलूचिस्तान में रहने वाले हिंदू और बलोच समुदायों में हिंगलाज माता के प्रति आस्था और गर्व की भावना और प्रबल हो गई।
स्थानीय लोगों ने इसे “नया आगाज़” कहा — एक ऐसा समय जब धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक पहचान और आध्यात्मिक पुनर्जागरण एक साथ उभर रहे हैं।

📖 पौराणिक कथा की गूंज: जब ब्रह्मांड थम गया था

शिव के क्रोध और सती की आत्मा की वेदना से जन्मी यह कथा, शिव पुराण के पन्नों से निकलकर आज भी इस भूमि में जीवित है।
जब सती ने अपने पिता के अपमान से आहत होकर आत्मदाह किया, तब शिव ने सृष्टि को कांपते हुए तांडव किया।
विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 108 भागों में विभाजित किया — और जहाँ-जहाँ वे गिरे, वहाँ शक्ति जागृत हुई।
हिंगलाज वह स्थान है जहाँ सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था — मस्तिष्क का वह केंद्र जहाँ चेतना का वास होता है।
यह मंदिर आज भी उसी शक्ति की ऊर्जा से स्पंदित है।

🗺️ प्रकृति की गोद में बसा तीर्थ

हिंगोल नेशनल पार्क की चट्टानों, गुफाओं और नदी के किनारे बसा यह मंदिर, प्रकृति और आध्यात्म का संगम है।
सैकड़ों सीढ़ियाँ चढ़ते हुए श्रद्धालु जैसे अपने भीतर की यात्रा भी करते हैं — हर कदम एक तपस्या, हर साँस एक प्रार्थना।

🌼 हिंगलाज यात्रा 2025: श्रद्धा की ऐतिहासिक लहर

इस वर्ष, 2 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने इस पवित्र यात्रा में भाग लिया — यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि मानवता की एकता का उत्सव बन गया। hinglaj temple
नारियल, गुलाब की पंखुड़ियाँ, और हिंगोल नदी में स्नान — हर क्रिया एक भक्ति की कविता बन गई।
बलूचिस्तान सरकार और स्थानीय प्रशासन ने इसे सुरक्षा, सेवा और सौहार्द का आदर्श उदाहरण बना दिया।

🤝 बलोच समुदाय: नानी पीर की सेवा में समर्पित

स्थानीय बलोच मुस्लिम समुदाय, जिन्हें हिंगलाज माता नानी पीर के रूप में प्रिय हैं,
हर वर्ष तीर्थयात्रियों की सेवा, सुरक्षा और सफाई में तन-मन से जुट जाते हैं।
यह मंदिर आज भी जीवंत है क्योंकि बलोचों ने इसे 2000 वर्षों से अपने हृदय में संजोया है —
धर्म से परे, यह एक संस्कृति की आत्मा है।

🛕 भविष्य की संभावनाएँ

  • बलोचिस्तान की स्वतंत्रता के बाद, हिंगलाज यात्रा को अंतरराष्ट्रीय तीर्थ यात्रा के रूप में मान्यता मिलने की संभावना है।
  • भारत और बलोचिस्तान के बीच धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिल सकता है।
  • यह मंदिर अब केवल एक शक्तिपीठ नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बनता जा रहा है।

🕉️ पाकिस्तान के अन्य शक्तिपीठ

हिंगलाज माता मंदिर के अतिरिक्त पाकिस्तान में दो और शक्तिपीठ स्थित हैं:

  • शिवाहारकराय शक्तिपीठ – जहाँ देवी सती की तीन आँखें गिरी थीं।
  • शारदा पीठ – जो अब एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल के रूप में जाना जाता है।

🌐 सांस्कृतिक एकता का संदेश

✨ हिंगलाज माता मंदिर — जहाँ शक्ति, श्रद्धा और सह-अस्तित्व एक साथ सांस लेते हैं।
यह मंदिर हमें सिखाता है कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि सेवा, सहिष्णुता और समर्पण भी है।

By Vivek Sinha

IT Professional | Techno Consultant | Musician

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