होयसलेश्वर मंदिर – भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना
‘होयसलेश्वर मंदिर’ भारत के भव्य कलाकृति और सनातन धर्म का एक अद्भुत मेल है। यह मंदिर भारतीय कला का एक बेजोड़ नमूना है जो हमारे सनातन धर्म को बढ़ावा देने के साथ ही साथ इस बात की भी पुष्टि करता है कि हमारी भारतीय सभ्यता कला के क्षेत्र में प्राचीन काल से ही कितनी विकसित रही है।
भारत में ऐसे कई मंदिर हैं जिनका संबंध या तो दूसरे युग से है या फिर उनका इतिहास कई हजार साल पुराना है। ऐसा ही एक मंदिर है “होयसलेश्वर मंदिर“।
होयसलेश्वर मंदिर को होयलेशेश्वर या होयलेश्वर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित है यह होयसलेश्वर मंदिर
कर्नाटक के बेलूर से लगभग 16 किलोमीटर दूर हसन जिला के हेलेविड में अवस्थित है यह मंदिर। पहले इस स्थान को द्वार समुद्र के नाम से जाना जाता था।
दक्कन के पठार पर स्थित यह खूबसूरत होयसलेश्वर मंदिर अपने आप में बेमिसाल है।
यह भी पढ़ें: भारत विश्व गुरु क्यों कहलाता है: भारत के 13 प्राचीनतम विश्वविद्यालयों के बारे में विस्तृत जानकारी
इस मंदिर का निर्माण होयसाल वंश के राजा विष्णुवर्धन के द्वारा करवाया गया
होयसलेश्वर मंदिर एक शिव मंदिर है, जिसके निर्माण का श्रेय वहां के राजा विष्णुवर्धन को दिया जाता है। उनके द्वारा 12वीं से 13 वी शताब्दी के मध्य यह बनवाया गया था। इस मंदिर की स्थापना 1121 में की गई और 1207 में तैयार हुआ।
भगवान शिव को समर्पित यह होयसलेश्वरा मंदिर एक शिव मंदिर है लेकिन यहां भगवान विष्णु, शिव और दूसरे देवी- देवताओं की भी मूर्तियां हैं।
यहां की मूर्तियों को सॉफ्ट स्टोन से बनाया गया है, जो समय के साथ कठोर हो जाता है। इसी वजह से कारीगरों को इतनी बारीकी से काम करने का फायदा भी हुआ।
इस मंदिर के अंदर बहुत कम रोशनी में भगवान शिव की एक शानदार मूर्ति विराजित है। शिव जी के मुकुट पर 1 इंच चौरी मानव खोपरियां बनी हैं। इन खोपरियों को इस प्रकार खोखला किया गया है कि उससे गुजरने वाली रोशनी आंखों के सुराख से होती हुई मुंह में जाकर कानों से बाहर लौट आती है। हाथों से बनाए गए यह सुराख सच में बड़े ही अद्भुत हैं।
होयसलेश्वर मंदिर एक ऊंचे प्लेटफार्म पर बना है, जिसके नीचे बारह परते हैं। इन परतों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें जोड़ने के लिए चूना और सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है बल्कि इंटरलॉकिंग के द्वारा इसे जोड़ा गया है। मंदिर आज भी इसी इंटरलॉकिंग की मजबूती के दम पर खड़ा है।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर सैकड़ों मूर्तियां बनी हुई हैं
इस मंदिर की हर मूर्ति एक ही पत्थर से बनी हुई है यह विशेषता भी कम अनोखी नहीं है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां की प्रत्येक मूर्ति एक ही पत्थर से बनाई गई है। मंदिर के अंदर पत्थर का है स्तंभ भी बना हुआ है। पत्थर का बना या स्तंभ गोलाकार डिजाइन में है, जिसे हाथ से बना पाना नामुमकिन सा लगता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा गोलाकार स्तंभ बिना मशीन के बना पाना संभव नहीं है लेकिन यह भी सोचने वाली बात है कि उस वक्त हमारे पूर्वजों ने पत्थरों को घुमाने के लिए किस मशीन का प्रयोग किया होगा।
होयसलेश्वर मंदिर वास्तुशिल्प का एक अप्रतिम नमूना है, जो आज भी आकर्षण का केंद्र है, यहां की कलाकृतियां काफी प्रसिद्ध हैं।
गरुड़ स्तंभ और कुरुभ लक्षम यहां के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न पशु- पक्षियों, देवी- देवताओं और नर्तकियों की कलाकृतियां, बारीक पत्थरों को तराश कर की गई नक्काशी अनुपम छटा बिखेरती है।
मंदिर के दक्षिण द्वार पर गणेश जी की 8 फीट ऊंची एक आकर्षक मूर्ति है।
होयसलेश्वर मंदिर का आकार सितारे जैसा है। मिसाइल, टेलिस्कोप, गियर जैसी आकृति वाला चित्र, पॉलिश करने वाले टूल्स की आकृति वाले चित्र भी इसकी दीवारों पर बने हुए हैं।
गरुड़ स्तंभ के ऊपर एक पौराणिक कन्नड़ शिलालेख मौजूद है। शिलालेख के अनुसार गरूड़ वहां के राजा और रानियों के अंगरक्षक थे, उनका एकमात्र उद्देश्य था अपने राज्य की रक्षा करना। राजाओं की मृत्यु के बाद गरुड़ ने भी अपने शरीर का त्याग कर दिया।
मंदिर से जुड़ी एक रोचक कथा
इस मंदिर से जुड़ी एक रोचक कथा यह भी है कि साल नाम का एक व्यक्ति अपने गुरु के साथ जंगल के रास्ते गुजर रहा था कि अचानक सामने एक शेर आ गया। गुरु ने अपने शिष्य से कन्नड़ भाषा में कहा “होय” साल, जिसका अर्थ था आक्रमण करो। शिष्य के पास उस वक्त हाथ में सिर्फ एक छड़ी थी, शिष्य ने उसी छड़ी से शेर को समाप्त कर दिया, उसी समय से उस स्थान का नाम होयसाल पड़ गया। बाद में वही होयसाल राजा बने।
लोगों का ऐसा भी मानना है कि इस मंदिर का निर्माण किसी मनुष्य ने किया ही नहीं है।
मंदिर की अद्भुत कलाकृतियों को देखकर ऐसा मानना असंभव है कि इसे मशीन के इस्तेमाल के बगैर बनाया गया है परंतु इस बात का कोई सबूत भी नहीं है कि मंदिर को बनाने में मशीनों का इस्तेमाल किया गया था। इसीलिए लोगों का यह मानना है कि इस मंदिर का निर्माण किसी मनुष्य के द्वारा नहीं किया गया है।
14 वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रांताओं ने इस मंदिर की लूटपाट की और इसे काफी क्षति भी पहुंचाया। परंतु आज भी हमारे सनातन धर्म की रक्षा करने वाला होयसलेश्वर मंदिर हमारी भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाए हुए हैं।