माया सभ्यता कितनी पुरानी है Maya Sabhyata Kitni Purani Hai
माया सभ्यता इससे अधिकांश लोग परिचित है। यह मेक्सिको की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी। इस सभ्यता की शुरुआत 1500 ई०पू० हुई थी। माया सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान अपनी प्रगति के शिखर पर पहुंची।
यह सभ्यता सेंट्रल अमेरिका के ग्वाटेमाला, मेक्सिको, होंडुरास और यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। इस सभ्यता के लोग कृषि पर आधारित थे।
“द माया” किताब येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल कोई (Michael D Coi) लिखते हैं की मायन लोगों की खेती की तकनीक बहुत ही गजब की थी। पूरे माया एरिया में सघन आबादी वाले शहर हुआ करते थे।
सिटी स्टेट की अवधारणा थी। एक शहर का एक राजा हुआ करता था, दूसरे शहर का दूसरा राजा होता था। शहरों में पक्के मकान थे। बड़ा सा किला हुआ करता था।
मंदिर जैसी धार्मिक जगह थी और दीवारों पर तरह-तरह की कलाकृतियां उकेरी गई थी।
माया सभ्यता कलात्मक विकास का एक स्वर्ण युग था
माया सभ्यता के लोग कला, गणित, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष और लेखन आदि क्षेत्र में काफी अच्छे थे। जिसके कारण इसे कलात्मक विकास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है।
इस दौरान खेती और शहर का विकास हुआ था इस सभ्यता की सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं जो उन्होंने धार्मिक केंद्र के रूप में बनाए थे।
माया पिरामिड
मेक्सिको में मौजूद चिचेन इट्जा को माया सभ्यता के द्वारा बनाया गया माना जाता है। यह माया सभ्यता का एक बड़ा शहर और प्रमुख केंद्र था। यह यूनेस्को (UNESCO) के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है।

चिचेन इट्जा में आकर्षण का केंद्र पिरामिड एल कैस्टिलो है। पहले पर्यटक इस पर चढ़ते थे, लेकिन बाद में इस पर रोक लगा दी गई।
फिलहाल यहां की करीब 42 मीटर ऊंची नोहल मुल ही एकमात्र ऐसा माया पिरामिड है जिस पर पर्यटकों को चढ़ने की अनुमति है।
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माया शासन व्यवस्था
ऐसा माना जाता है कि माया सभ्यता की शासन व्यवस्था पुरुषों के हाथ में थी। कभी-कभी रानियां भी शासन करती थी। राजा का पद पैतृक था अर्थात पिता के बाद पुत्र को राजगद्दी मिलती थी।
साम्राज्य विस्तार एवं उनकी सुरक्षा हेतु राजा का बहादुर होना जरूरी था। राजा के सिहासन पर बैठते समय देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि दी जाती थी।
राजा अभिजात वर्ग और पुरोहितों की मदद से शासन चलाता था। राजा भव्य महलों में रहता था जिसकी सेवा में बड़ी संख्या में दास-दासिया होते थे।
नरबलि की प्रथा
इतिहासकारों के मुताबिक माया सभ्यता में नरबलि हुआ करती थी, इसी से जुड़ा एक खेल भी था। इस खेल के लिए मायन सभ्यता के शहरों में एक बॉल कोर्ट होता था। इसमें शहर के सबसे अच्छे एथलीट हिस्सा लेते थे। कठोर रबड़ से एक फुटबॉल जितनी बड़ी बॉल तैयार की जाती थी। इस बॉल के अंदर इंसान की खोपड़ी भी रखी जाती थी और फिर इस बॉल से 2 टीमें खेलती थी। खेल के बाद नरबलि होती थी। इस तरह के खेल में बहुत बड़े सांस्कृतिक आयोजन हुआ करते थे।
माया सभ्यता का कैलेंडर
माया सभ्यता ने एक कैलेंडर बनाया था जिसमें विभिन्न धार्मिक त्योहारों और खगोलीय घटनाओं का वर्णन मिलता है। इसे माया सभ्यता का कैलेंडर कहा जाता है।

शायद आपको पता ना हो लेकिन माया सभ्यता के कैलेंडर में ही इस बात की भविष्यवाणी की गई थी कि 21 जून 2012 में दुनिया खत्म हो जाएगी। हालांकि यह भविष्यवाणी गलत साबित हुई क्योंकि यह कैलेंडर मात्र 2012 तक का ही बना था। इसीलिए ऐसा अनुमान लगाया गया।
इस विकसित सभ्यता को कमतर करने के लिए यह अफवाह फैलाई गई।
इतनी विकसित माया सभ्यता का अंत क्यों और कैसे हुआ
इस सभ्यता का अंत 16वीं शताब्दी में हुआ लेकिन इसका पतन 11वीं शताब्दी से शुरु हो गया था। इस प्राचीन सभ्यता का विनाश कैसे हुआ, यह आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है। दुनिया भर के विशेषज्ञ इस बात का पता लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
माया सभ्यता के अंत को लेकर ‘लाइवसाइंस’ की एक रिपोर्ट कहती है कि छठी शताब्दी से लेकर दसवीं शताब्दी के बीच एक भयंकर सूखा पड़ा था, जिसकी वजह से इस प्राचीन सभ्यता का विनाश होना शुरू हो गया।
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि शोधकर्ताओं ने कुछ साल पहले बेलीज के प्रसिद्ध ‘ब्लूहोल’ और उसके आसपास मौजूद खनिज की जांच की जिससे पता चला कि सूखा 800 से 900 ईसवी के मध्य पड़ा था जो इस सभ्यता के विनाश का कारण बना।
ब्लू होल क्या है
ब्लू होल एक गोलाकार गुफा है जो समुद्र में बनी है। यह 318 मीटर एरिया में फैला है और गहराई 125 मीटर है। इस समुद्री गुफा को स्कूबा डाइविंग के लिए दुनिया में सर्वोत्तम जगहों में से एक माना जाता है। यह मध्य अमेरिकी देश बेलीज में है।
ब्रिटिश स्कूबा डाइवर और लेखक ‘नेट मिडलटन’ ने इस जगह को ‘ग्रेट ब्लू होल’ नाम दिया है। डिस्कवरी चैनल ने इसे दुनिया का सबसे खूबसूरत जगह माना है।
क्या माया सभ्यता भारतीय सभ्यता की ही देन है
श्री चमन लाल कृत “हिंदू अमेरिका पुस्तक” में माया सभ्यता तथा भारतीय सभ्यता की पारस्परिक निकटस्थ समानताएं वर्णित हैं। स्वयं ‘मय’ शब्द ही भारतीय है।
मैक्सिको मैं श्री गणेश जी तथा सूर्य देव की प्रतिमा प्राप्त हुई है।
मेक्सिको वासियों के पारस्परिक गीतों में नवविवाहिता कन्या को वर पक्ष के घर भेजते समय मां द्वारा प्रकट किए गए उद्गार भारतीय विचारों के समरूप हैं।
चेहरे से प्राचीन मेक्सिको के लोग उसी जाति के प्रतीत होते हैं जिस जाति के भारत के उत्तर- पूर्वी क्षेत्र के निवासी।
प्राचीन भारतीय शब्दावली में अमेरिकी महाद्वीपों वाला पश्चिमी गोलार्ध पाताल कहलाता था। यह हो सकता है कि बाली को पाताल क्षेत्र खदेड़ने का संदर्भ ऐतिहासिक रूप में उसकी पराजय तथा बाली द्वीप पर बने द्वीपस्थ दुर्ग से हटकर सुदूर मेक्सिको में जा बसने का द्योतक हो।
माया सभ्यता में एक एथनिक ग्रुप है केकची माया। इनका कहना है कि 20000 साल पहले इनके पूर्वज भारत से ही सेंट्रल अमेरिका में गए थे। बी.एम बिरला साइंस सेंटर हैदराबाद के स्कॉलर वीजी सिद्धार्थ ने भारतीय और मायन लोगों के बीच समानता पर एक शोध प्रकाशित करवाया था। इस शोध के मुताबिक हिंदू पौराणिक ग्रंथों में जिस तरह समुद्र मंथन का जिक्र है वैसा ही जिक्र मायन ग्रंथों में भी है।

माया सभ्यता में भी स्वास्तिक का जिक्र मिलता है। इसके अलावा कमल, हाथी और दूसरे चिन्ह जिस तरह भारतीय सभ्यता में काम में लिए जाते हैं वैसा ही माया सभ्यता में भी मिलता है।
हिंदू ग्रंथों और मयन में पूजा का तरीका भी मिलता- जुलता है। मायन कैलेंडर की शुरुआत 3112 BC से होती है। इसके आसपास ही भारतीय मान्यताओं में कलयुग की शुरुआत मानी जाती है। कलयुग की शुरुआत 3102 बीसी से मानी जाती है।
इसके अलावा महाभारत के किरदार अर्जुन का मित्र माया था जो शिल्प कला में निपुण था। बीजी सिद्धार्थ के रिसर्च पेपर के मुताबिक अर्जुन के मित्र माया का ताल्लुक मायन लोगों से ही था। होमो सेपियंस की शुरुआत एक ही जगह से मानी जाती है, इसीलिए हो सकता है सेंट्रल अमेरिका और प्राचीन भारत के लोगों में समानता रही हो।
माया भाषा की समानता संस्कृत भाषा से
आज भी माया भाषा में कई शब्द हैं जो वैदिक संस्कृति से एक संबंध का संकेत देते हैं। माया शब्द “कुल्टुनिलनी” दैवीय शक्ति को संदर्भित करता है और यह संस्कृत शब्द कुंडलिनी से स्पष्ट समानता रखता है जो जीवन ऊर्जा और चेतना की शक्ति को भी संदर्भित करता है।
कुल्टुनिलनी सभी मानव विकास और विकास को सशक्त बनाने वाली महत्वपूर्ण जीवन शक्ति है। यह मनुष्य के भीतर ईश्वर की शक्ति को संदर्भित करता है जो सांस द्वारा नियंत्रित होती है जो हिंदू कुंडलिनी के अर्थ में समान है।
संस्कृत शब्द योग को माया शब्द “योकह” में फिर से पाया जा सकता है, जिसका अर्थ है ‘योक’ (ऊपर, उच्च) और हह (सत्य) के संयोजन से उच्चतर सत्य। योग की उत्पत्ति पुरातनता और रहस्य में डूबी हुई है।
रोगों के उपचार भी वैदिक विधि से
यद्यपि योग के सिद्धांतों और अभ्यास को हजार साल पहले क्रिस्टलीकृत किया गया था, यह केवल 200 ईसा पूर्व के आसपास था कि इसके मूल सिद्धांतों को पतंजलि ने अपने ग्रंथ में एकत्र किया, जिसका नाम योगसूत्र है। संक्षेप में, पतंजलि ने कहा कि योग के अभ्यास के माध्यम से, मानव शरीर के भीतर निहित ऊर्जा सकारात्मक रूप से जागृत और जारी की जा सकती है।
माया ने न केवल देवताओं की बल्कि पशुओं और कीड़ों की भी मूर्तियाँ बनाईं। वे आत्मा और परलोक की अमरता में भी विश्वास करते थे। यह सब हिंदू पूजा और मान्यताओं के समान है।
माया की तरह, हिंदुओं में भी कई देवता हैं जिन्हें प्रमुख देवताओं की अभिव्यक्ति माना जाता है। वे जानवरों, चट्टानों, पेड़ों और नदियों की भी पूजा करते हैं जिन्हें पवित्र और पवित्र माना जाता है।
आयुर्वेद की तरह माया मेडिसिन का अभ्यास पुजारियों द्वारा किया जाता था, जिन्हें अपनी स्थिति विरासत में मिली और उन्होंने व्यापक शिक्षा प्राप्त की।
प्राचीन माया यह जानती थी कि मन बहुत महत्वपूर्ण है, और उन्होंने मन और शरीर के संबंध में चिकित्सा के लिए अपने दृष्टिकोण पर बहुत जोर दिया। वे हड्डी, ओब्सीडियन और चमड़े से बने उपकरणों (एनीमा के लिए) का उपयोग करते थे।
उन्होंने मानव बालों के साथ घावों को कम किया, फ्रैक्चर को कम किया और कास्ट का इस्तेमाल किया। ओब्सीडियन ब्लेड का उपयोग सर्जरी करने के लिए किया गया था जिससे कम निशान वाले ऊतक के साथ अधिक तेजी से चिकित्सा को बढ़ावा मिला।
माया सभ्यता के निशान को नष्ट किया गया
फ्रायर डिएगो डे लांडा, एक फ़्रांसिसी भिक्षु जिन्होंने सभी माया पांडुलिपियों (प्राचीन इतिहास, पौराणिक कथाओं, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, विज्ञान, धर्म और दर्शन पर अनमोल जानकारी) और युकाटन में मूर्तियों को जलाया, उनकी पुस्तक में – Relación de las cosas de Yucatán में लिखा है “उनके पास बहुत बड़ी संख्या में मूर्तियाँ और मंदिर थे जो अपने स्वयं के फैशन में शानदार थे और सामुदायिक मंदिरों के अलावा, स्वामी, पुजारी और प्रमुख पुरुषों ने भी अपने घरों में प्रयोगशालाओं और मूर्तियों को रखा था जहाँ उन्होंने निजी तौर पर प्रार्थना और प्रसाद बनाया था।”
अपने समय की एक सुविकसित सभ्यता ने अपने पीछे असंख्य निशान छोड़ रखे हैं, जो इसके सनातनी परंपरा होने के पुख्ता सबूत देते हैं। देर सबेर अमेरिका की माया सभ्यता और वैदिक सभ्यता की समानताएं इतिहासकार भी समझ और मान भी जायेंगे, एक स्वस्थ चर्चा और रिसर्च अगर फिर से हो।
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