Guptadham

Guptadham Sasaram

ऐतिहासिक गुप्ताधाम गुप्तेश्वर नाथ महादेव गुफा मंदिर का रहस्य आज तक अनसुलझा ही रह गया
झारखण्ड के रोहतास में अवस्थित विन्ध्य श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलो से घिरे गुप्ताधाम की गुफा जिसमें गुप्तेश्वर नाथ महादेव का प्राकृतिक शिवलिंग विराजमान है। प्राकृतिक छटाओं से भरपूर कैमूर की दुर्गम घाटियों से होकर गुजरने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, फिर भी यहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है।

साल में 5 बार लगता है मेला

बसंत पंचमी, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख शिवरात्रि तथा सावन में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। यहां बक्सर से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है। गुप्तेश्वर धाम गुफा मंदिर से एक किलोमीटर पहले सीता कुंड है। पहाड़ियों से घिरे इस कुंड का पानी ठंडा और शीतल होता है। गुफा मंदिर में जाने से पहले श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करते हैं।

भस्मासुर के डर से बिहार में यहाँ छुपे थे भगवान शिव

गुप्तेश्वर धाम गुफा मंदिर के बारे में कुछ किवदंती है कि कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव ने जब भस्मासुर की तपस्या से खुश हो कर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने की शक्ति का वरदान दिया था। भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर उनसे मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। वहां से भाग कर भगवान शिव इसी गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे। भगवान शिव की इस विवशता को देखकर भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोलेनाथ बाहर निकले।

इस गुफा के अनसुलझे रहस्य हैं

गुप्ता धाम गुफा की गुफा कितनी पुरानी है इसके बारे में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। इस की बनावट को देखकर पुरातत्त्वविद अब तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि यह गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।
‘रोहतास के इतिहास’ सहित कई पुस्तकों के लेखक श्याम सुंदर तिवारी के कथन अनुसार गुफा के नाचघर और घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा गुफा के अंदर मौजूद है।

गुफा के अंदर है पाताल गंगा

गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के अंदर जाना संभव नहीं है। अंदर गर्मी भी महसूस होती है, बाहरी हवा का प्रवेश नहीं होता। श्रद्धालु के रक्षा के उद्देश से ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की जाती है। पहाड़ी पर स्थित पवित्र गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा और 12 फीट ऊंचा मेहरानुमा होता है। गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें साल भर पानी रहता है। श्रद्धालु इसे पाताल गंगा कहते हैैं।

प्राकृतिक शिवलिंग पर टपकता रहता है पानी

गुफा के अंदर स्थापित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। भगवान की जटा से गंगाजल टपकता है ऐसा लोग कहते हैं, श्रद्धालु चातक की तरह मुंह खोलकर जल की बूंद ग्रहण करते हैं।

विख्यात उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री ने अपने उपन्यास चंद्रकांता में विंध्य पर्वत श्रृंखला के जिस तिलिस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवतः उन्हीं गुफाओं में गुप्ता धाम की यह अद्भुत गुफा भी है। वहां धर्मशाला व कुछ कमरे बने हैं जो जर्जर हो चुके है।

समाजसेवियों के सहारे ही इतना बड़ा मेला चल रहा है

गुप्ताधाम गुफा मंदिर के अंदर ऑक्सीजन की कमी से 1989 में हुई दुर्घटना के बाद ही सरकार द्वारा कुछ आक्सीजन सिलेंडर भेजा गया था, प्रशासन की ओर से चिकित्सा शिविर भी लगता था। परंतु वन विभाग द्वारा इस क्षेत्र को अभ्यारण घोषित किए जाने के बाद प्रशासनिक स्तर पर दी जा रही सुविधा बंद कर दी गई। अब समाजसेवियों के सहारे ही इस मेला का आयोजन होता है।

पाताल गंगा की गुफा के दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे “ब्रम्हा के लेख” नाम से जाना जाता है, को पढ़ने से संभवतः इस गुफा के कई रहस्य खुल जाए। गुफा के रहस्य को सुलझाने हेतु एवं श्रद्धालुओं के मंदिर तक जाने के लिए दुर्गम रास्ते को सुगम बनाने के लिए सरकार की ओर से ध्यान देने की आवश्यकता है।

By कुनमुन सिन्हा

शुरू से ही लेखन का शौक रखने वाली कुनमुन सिन्हा एक हाउस वाइफ हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *